रविवार, 11 नवंबर 2007

इन सियासत के नागों से बचियो.

उपरोक्त एन.सी.सी युनिफोर्म में हमारी तस्वीर है.


ग़ज़लहम जमाने की ख़बर रखते हैं .
और ख़ुद पर भी नज़र रखते हैं .

खून रिसता है अब तो छालों से,
पांवों में फिर भी सफ़र ऱखते हैं.

फ़स्लें हम सूखने नहीं देंगे,
अपने सीने में नहर रखते हैं.

ख़स्ता हाली पे अपनी ना जइयो,
गोदड़ी में भी गुहर ऱखते हैं.

इन सियासत के नागों से बचियो,
मीठी बातों में ज़हर ऱखते हैं.

उर्वशी हमसे मिलने आती है ,
अपनी आहों में असर ऱखते हैं.

डॉ. सुभाष भदौरिया,अहमदाबाद ता.11-11-07 समय-12.10 PM




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें