शुक्रवार, 14 दिसंबर 2007

कौन पिटरौल फिर से बाँटे है ?

ग़ज़ल

ख़ुद से झरती मैं पत्तियाँ देखूँ .
तेज सपने में आँधियाँ देखूँ .

कौन पिटरौल फिर से बाँटे हैं ?
हर जगह जलती बस्तियाँ देखूँ.

अपने माँ बाप कर दिये ख़ारिज,
कोर्ट में दर्ज अर्ज़ियाँ देखूँ .

जिनको ज़िन्दा जला दिया तुमने,
बेबसों की मैं सिसकियाँ देखूँ .

क़त्ल होते मैं देखूँ गलियों में ,
बंद होती मैं खिड़कियाँ देखूँ .

कौन गालों के आँसू पोंछे है,
किसकी बालों में उँगलियाँ देखूँ .

जब से बिछड़ी वो फिर मिली ही नहीं,
अपने ख़्वाबों में राखियाँ देखूँ .

बूढ़े माँ बाप के गले लगकर ,
एक दुल्हन की हिचकियाँ देखूँ .

अब तो दुश्मन मुझे बचाये हैं ,
हाथ यारों के आरियाँ देखूँ .


दूसरों की सुभाष क्या जाने,
अब तो अपनी ही ग़लतियाँ देखूँ .

डॉ.सुभाष भदौरिया 14-१२-07 समय- 10-12 AM









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