शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2008

चुहियों की चूँ-चूँ बिल्लों की खों-खो.



चुहियों की चूँ---चूँ बिल्लों की खों---खों.

आज नेट पर आकर देखा तो चारों तरफ से चूँ-चूँ और खों-खों की आवाज़े आती सुनाई दी पहले चूँ- चूँ की आवाज़ का जाइज़ा लिया तो ज्ञात हुआ कि एक मंच पर कुछ पढी लिखीं चुहियाँ बिराजमान है कुछ साधू बिल्ले बीच में बैठे मंद मंद मुस्करा रहे हैं.सामने श्रोतागण कोई नज़र नहीं आता.गरीब और मेहनतकश चुहियों को इतनी कहाँ फुरसत की फालतू के गाल बजायें वे अपने काम में लगी हुई हैं. बैटे ठाले की पंचाइत में वे नहीं पड़ती.(प्रथम दृश्य का आरम्भ एक बंगले में महफिल लगी हुई है.)
मंच पर बड़ी गहमा गहमी चल रही है.एक सीनियर चुहिया जिसे सब मेम मेम कह रहीं हैं बड़े तैश में है. कहती है मेरी प्यारी बहनो बिल्ले हमें सदियों से शिकार करते आ रहे हैं. हमें गुलाम बना रक्खा है. हम कब तक जंजीरों में यों ही जकड़ी रहेंगी .आओ हम इन जंजीरों को तोड़ डाले और बिल्लों को सबक सिखायें. पर खतरा हमें बाहर से नहीं अंदर से ही है. अभी साधू बिल्लों ने एक हमारी ही साथिन को पुरस्कार दिया तो हम लोगों में से कुछ ने जलकर उसका विरोध किया.ये ठीक नहीं है --------
एक कटखनी चुहिया बीच में ही बोल पड़ी सोरी मेम बिल्लों का वो जातीय विभाजन मुझे ठीक नहीं लगा था.
शटअप मंच पर बैठी सीनयर चुहिया चीख पड़ी. तुम मुझे पढ़ा रही हो.नानी के आगे नन्होरे की बातें करती हो. अपने आप से पूछो कि तुम्हें पुरस्कार मिलता तो तुम दौड़ी चली जातीं तुम्हारी पीड़ा यही थी. तु्म्हारी हर जगह काटने की आदत बहुत खराब है. बदमाश बिल्लों से हम बाद में निपटेंगी पहले सब मिलकर तुम्हारे ही दांत तोड़ेंगी.
सोरी मेडम कटकनी चुहिया चुप हो गयी.
फिर एक हट्टी कट्टी चुहिया चिल्लाई उस डाकू बिल्लें को किसने आमंत्रित किया था.आगया कमबख्त लिस्ट लेकर हमें कैसे पतित होना है की सीख देने.
अरे हम रस मलाई हैं कि लार टपकाने लगे सभी.उसने सोचा उसके भोंपूबेन्ड में एक और भोपूं बढेगा आ गया गद-गद होकर नसीहत देने.
फिर कटखनी चुहिया बोली उस भोपूं बैंन्ड में है क्या ? पूरा लुच्चों का लश्कर है कहते हैं कि चंद दिनों में अपनी सरकार बनाने नाले हैं. जीना हराम कर रक्खा है. पापियों ने.गालियों के सिवा दूसरा है ही क्या.
इसका मतलब तुम भी उनके डेरे पर जाती हो.
एक गंभीर चुहिया ने कहा.देखो वे लुच्चे नहीं उच्च कोटी के संत हैं उनकी कुंडलनी जाग गयी है.
योगी परम अवस्था में इसी तरह की भाषा बोलते थे. हमें साधू और डाकू सभी बिल्लों से ताल मेल बिठाकर रखना चाहिए तभी हम आगे बढ़ सकते हैं-----

मंच पर बैटी सीनियर चुहिया फिर गरजी. अरे हम कहाँ तलवार लेकर उनकी गरदन काटने जा रही हैं और जब तक तुम्हारे जैसी हम-दर्द बैठी हैं तब तक वे हमारा यों ही शिकार करते रहेंगे. हम तो उनके गले में घंट बाँधना चाहती हैं कि हम चौकन्नी रह सकें हमारी आने वाली नस्लें उन से बच सकें.
सीधी-सादी चुहिया खिसयाकर चल दी.

कटकनी चुहिया फिर बोली पहले उस डाकू बिल्ले को भगाओ वो हमें एक एक कर चट करेगा. उसकी लार कैसी टपक रही है.हमारी पतित होने की पुकार पर सामूहिक भोजन का प्लान बना रहा होगा दुष्ट,पापी, नर्क का कीड़ा पहले उसे भगाओ वो भी उठ खड़ी हुई.

तभी एक गंभीर आवाज़ में एक चुहिया बोली हम चुहियों के कार्य भी कहाँ गंभीर हैं हम अपने काम में सीरियस नहीं हैं.खाली बिल्लों को कोसने से क्या होगा हमें अपना आत्म-मूल्यांकन भी करना चाहिये. बिल्लों के टेलेन्ट से मैं वाकिफ हूँ.मैंने उनकी विज़िट ली है बड़े ही उम्दा जज़्बात के मालिक हैं तुम जिन्हें डाकू या बदमाश बिल्ला समझ रही हो वे पहुँचे फकीर है.सीधी सच्ची बात तल्खियों में कहते हैं. तुम साधू बिल्लों के कीर्तन पर मुग्ध हो.तु्म्हारी नज़र कमज़ोर हो गयी है ऐसा मुझे लगता है.
गेट आउट ये कौन आयी नयी नयी हमें सिखाने. मंच की सीनियर चुहिया अपना ऐनक ठीक करती हुई चीखी..नई नई किताब मेले में से तस्लीमा नसरीन पढ़के आयी है शेखी बघारने. जा शामिल हो जा तू भी उन पापियों के साथ.
एक कहती थी कि मेरा मानसिक स्वास्थय ठीक नहीं दुसरी कहती है नज़र कमज़ोर.
पास ही बैठे एक कबीर नामके बिल्ले ने मुस्कराकर कहा तो दिखालो ना किसी स्पेसालिस्ट को.सभी का डाउट किलियर हो जाये. वैसे भी एक उम्र के बाद चैकप कराते रहना चाहिए.फिर साधू बिल्ला भागता है उसको एक सुंदर पर बेवकूफ चुहिया का फोन आया खास अपायनमेंट हैं.
डाकू लूट के खाते हैं साधू फुसला के.
(एक एक कर सारी चुहिया चली जाती हैं. दूसरे साधू बिल्ले भी भाग लेते हैं.सीनियर चुहिया मनन कर रही है कि डाक्टर को दिखाउँ या यों ही बवाल मचाऊँ. पहला दृश्य पूरा.)
(दूसरा दृश्य डाकू झपटसिहं बिल्ले का दरबार सामने मेज पर बोतल सिगरेट और अगेरह बगैरह- डाकू सरदार झपट सिहं बिल्ले के मुँह से फेंन गिर रहा है चुहियों को पतित होने के गुरु सिखाने जाने पर सब चुहियों ने रगेड़ा अकेले गये थे रस मलाई खाने जान बचा कर भागे चुहियों के कई निशान जिस्म और जहन पर हैं.)

सभी डाकू बिल्ले पूछते हैं. वापिस आ गये सरदार खाली हाथ. हम सोच रहे थे कि दो चार तरो ताज़ा चुहियों को भी लेते आओगे.हमारे लिए.
झपटसिहं- अबे डाक्टर दवा लगा बहुत गहरे जख्म है एक हट्टी कट्टी चुहिया पिल पड़ी फिर दूसरी तीसरी बड़ी मुश्किल से जान बची.हाय मार डाला लुच्चियों ने.
पर काहे को गये थे ज्ञान बघारने अपने डेरे पे ही रेंक लेते.क्यों हम सब की फज़ीहत कराते हो.एक समझदार बिल्ले ने कहा.
अरे हम आयडिया देने गये थे हाऊ टू बी पतित. तुम सब के फायदे के लिये.
हम सब के फायदे के लिये अकेले गये थे गुरू हम सबको चरका देते हो. पहले ही वो गंगा भौजी ने सबके बांस कर रखा है उसके वियोग में कैसे रो रहे थे फें फें कर के.
जाओ चली जाओ हमें छोड़कर पारो---हम तुम्हारे बिना जी लेंगें.गरू तुम्हारी लीला हमी जानते हैं. निशाना बराबर लगा दिये.
और गंगा भौजी ने ठान ली पापियों का उद्धार कर के ही मानेंगी.

अबे डाक्टर वो लहसुन-बटी ला. डाक्टर लहसुनबटी देता है.डाकू बिल्ला झपटसिंह एक साथ कई गोलियां शराब के साथ निगल लेते हैं.
सरदार अकेले अकेले खा रहे हो . ये लहसुन बटी की क्या तासीर है हमें भी बताओ.
अबे मूर्खो लहसुन वटी की तासीर पूछते हो-गरमा गरम वियाग्रा से भी बढ़कर अपने डाक्टर साहब बतावे हैं .अपने गिरोह में आने वाली भौजी के लिये फिट हो रहा हूँ.

गिरोह के दूसरे बिल्ले दबी ज़बान में बात करते हैं.अब पता चला दादा गिरोह की भौजी के लिये क्यों भैरा रहे हैं.रात में भी भौजी भौजी चिल्लाते हैं सब घर में टेंसन कर रहे हैं क्या लफड़ा है यार ये डाक्टर ने खिला खिला लहसुन वटी मति खराब कर रखी है देखना भौजी के लिये कहीं गृहयुद्ध न छिड़ जाये.
अबे भौजी ढूढ़ो जल्दी सालो नहीं तो तुम्हारे किसी के ऊपर ही लहसुन बटी का प्रेक्टील करुँ दिन दहाड़े. पेलूँ अभी एकाद को.
अरे यार भागो चढ़ गयी है सरदार को कहीं सही में प्रेक्टीकल न कर बैठे. एक लहसुन बटी का जादू, दूसरे गंगा भौजी का ग़म तीसरे हट्टी-कट्टी चुहिया की रगड़ाई. बहुत टेंसन हो गया है बास को.
एक तरफ चुहियों की चूँ –चूँ और बिल्लों की खों-खो से फिज़ा में में रंगीनी आयी हुई है पहले कुत्ते का रुदन और हंस का डिस्को हुआ देखें निम्न लिंक पर देखे.
http://subhashbhadauria.blogspot.com/2008/01/blog-post_13.html
हमने सोचा ग़जलें छोड़ो कुछ और कहो.बकौले दुष्यन्त कुमार-
तुम्हारे पाँव के नीचे कोई जमीन नहीं.
ग़जब तो ये है कि फिर भी तुम्हें यकीन नहीं.
मैं बेपनाह अंधेरों को सुब्ह कैसे कहूँ,
मैं इन नज़ारों का अंधा तमाश बीन नहीं.
डॉ.सुभाष भदौरिया,अहमदाबाद-ता.22-02-08समय-6-00PM
























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