सोमवार, 28 जुलाई 2008

बचकर न कोई जाये दरिन्दों को शूट कर.


मेरे शहर अहमदाबाद में हुए विस्फोटों से आसमां का दिल भी दहल गया.कल रात से बारिस हो रही है.उपरोक्त तस्वीरों में विस्फोट में घायल बच्चा यश अपने पापा को खो चुका है. कमज़र्फों ने अस्पताल को टारगेट बनाया ताकि घायल लोग तड़प तड़प के मरें अपना इलाज़ भी न करा सकें. ये ग़ज़ल इसी पसमंज़र की है जनाब.
ग़ज़ल
रोया है आसमां भी बहुत फूट-फूट कर.
खुशियाँ वो मेरे शहर की जाये है लूट कर.

हम ज़ख्मी परिन्दों की ये हालत न पूछिये,
दानों को लेने निकले थे शाखों से छूट कर.

बच्चे से बाप छीन लिया सितमगर ने देख,
वो सब्र की घुट्टी को पिलाते हैं कूटकर.

लोगो ये जंग लड़नी है अपने ही हाथ से,
बचकर न कोई जाये दरिंदों को शूट कर.

दिल्ली का क्या पड़ी वो हनीमून में है मस्त,
नौटंकी करने आयें जो भड़ुये तो हूट कर.

डॉ.सुभाष भदौरिया,.ता.28-07-08 समय-11.00AM























2 टिप्‍पणियां:

  1. हम ज़ख्मी परिन्दों की ये हालत न पूछिये,
    दानों को लेने निकले थे शाखों से छूट कर.

    बच्चे से बाप छीन लिया सितमगर ने देख,
    वो सब्र की घुट्टी को पिलाते हैं कूटकर.
    आप का गुस्सा बहुत वाजिब है....बहुत प्रभावशाली रचना लेकिन क्या वो लोग पढेंगे जिनके लिए लिखी गयी है....???
    नीरज

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  2. jin logo ne esa kam kiya hai un logo ke haat aur pair kaat kar zinda chod dena chahiye

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