शनिवार, 16 अगस्त 2008

आग बरसात में, वो दिल में लगाने वाले.

ग़ज़ल
आग बरसात में, वो दिल में लगाने वाले.
खो गये जाने कहाँ, हमको रुलाने वाले.
दिल भी वो ले गये चुपके से चुराकर इक दिन,
मेरे छुटपन में खिलौनों को चुराने वाले.
कोई ईमेल, कोई फोन, कोई ख़त भी नहीं,
याद आते हैं बहुत हमको भुलाने वाले.
हम जो रूठें, तो भ ला कौन मनाये हमको,
अब कहाँ दुनियां में हैं अपने मनाने वाले.
लोग ऐबों को उछाले हैं सरेआम मेरे,
दोस्त मिलते नहीं ऐबों को छिपाने.
रास्ता भटके हैं जो लोग बस्तियों में यहाँ,
खिज्र खोयें है कहाँ राह दिखाने वाले.
आज हम हैं तो तवज़्जो नहीं देते हम पे,
खो गये हम तो ये ढूँढ़ेंगे ज़माने वाले.

डॉ.सुभाष भदौरिया,.ता.16-08-08 समय- 04.30PM









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