गुरुवार, 25 सितंबर 2008

कौन पिटरौल फिर से बांटे है ?

२७ फरवरी २००२ साबरमती एकस्प्रेस गोधरा में साज़िश के तहत जलाई गयी।जस्टिस नाणावटी की रिपोर्ट गुजरात विधानसभा में प्रस्तुत की गयी। ये ग़ज़ल उसी पस मंजर की है जो मेरे ब्लाग याहू पर पूर्व प्रकाशित है
ग़ज़ल
ख़ुद से झरती मैं पत्तियाँ देखूँ .
तेज सपने में आँधियाँ देखूँ .
कौन पिटरौल फिर से बाँटे हैं ?
देश में जलती बस्तियाँ देखूँ.
जिनको ज़िन्दा जला दिया तुमने,
बेबसों की मैं सिसकियाँ देखूँ .
क़त्ल होते मैं देखूँ गलियों में ,
बंद होती मैं खिड़कियाँ देखूँ .
कौन गालों के आँसू पोंछे है,
किसकी बालों में उँगलियाँ देखूँ .
जब से बिछड़ी वो फिर मिली ही नहीं,
अपने ख़्वाबों में राखियाँ देखूँ .
बूढ़े माँ बाप के गले लगकर ,
एक दुल्हन की हिचकियाँ देखूँ .
अब तो दुश्मन मुझे बचाये हैं ,
हाथ यारों के आरियाँ देखूँ .
दूसरों की सुभाष क्या जाने,
अब तो अपनी ही ग़लतियाँ देखूँ .
डॉ.सुभाष भदौरिया अहमदाबाद. ता. 25-9-08समय- 9-30 PM

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