रविवार, 2 नवंबर 2008

कुंटल-कुंटल के कूल्हे सखी और थन तुम्हरे कटहल जैसे.

(सखी महिमा)
कुंटल-कुंटल के हैं कूल्हे सखी, और थन तुम्हरे कटहल जैसे.
हम दोनों हाथ से थामत हैं, वे सरकत हैं मखमल जैसे.
खाई में गिरे वे ना निकरे, हमहुँ तो फँसे दलदल जैसे.
दिन रात तुम्हारे ज़ुल्मों को, हम सहत रहत निर्बल जैसे.

(ब्लॉगर महिमा)
तुम लोग अनाड़ी छिनाड़ी सभी, नित हमको दोष लगा करिबे,
मैदान में मारें तक तक के, हम पाँव न पीछे को धरिबे.
तुम कौन घघरिया में जाय छिपे, देखें तो तुम्हारे हम जलबे.
हम पर है दीनदयाल कृपा, फिर लुच्चे साले का करिबे।
(नेता महिमा)
नेता बदमाश हरामी सभी ,नित जनता को मरवाय रहे.
हिन्दू औ मुस्लमा लड़वाके, सब अपना खेल बनाय रहे.
हुल्कार मराठी बिहारी पे अब, गोली सीने में चलाय रहे.
सोये हैं ससुर सब जग वाले, हम तो कब के चिल्लाय रहे.
(गुरू महिमा)
हमको गुरु घंट मिले ऐसे.
हमको दुत्कारत थे हर दम, वे प्रीत करत थे छोरिन ते.
हम द्वार पे राह तकें उनकी, वे मौज करे कुलबोरिन ते.
पंछी वे उड़ाय हमारे सभी,फिर फाँसत थे बलजोरिन ते.
हमको तलफत वे छोड़ गये,अब जाय फँसे हैं औरन ते.

ता.02-11-08 समय-04-25PM











17 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह! सुभाष भाई आप तो गुरुघंटाल निकले.जबरदस्त लोचा.....

    जवाब देंहटाएं
  3. आप का हर अंदाज दिलचस्प है...सच कहूँ तो आप का कोई जवाब नहीं...आप जिस दुविधा में हैं उसमें से एक दिन सब को मुहं चिडाते हुए तीर की तरह से निकल जाओगे...मेरी बात याद रखना.
    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  4. नीरज जी मैं कोई दुविधा में नहीं मिशन साफ है.
    बकौले ग़ालिब

    न सताईश की तमन्ना न सिले की परवाह,
    गर नहीं हैं मेरे अशआर में मानी न सही.

    तो दूसरी तरफ अपने अशआरों पे नाज़ भी हो आता है.बकौले मीर तक़ी मीर-
    सारे आलम पे हूँ,मैं छाया हुआ.
    मुस्तनद है मेरा फ़र्माया हुआ.
    हम इस दौर के मीर और ग़ालिब हैं मेरी जान.
    दूसरे भले न समझें तुम समझते हो ये क्या कम है.

    जवाब देंहटाएं
  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  6. रचनाजी आपके निर्देशन से टिप्पणी हटाने का मसला हल हुआ धन्यवाद.
    कृपा दृष्टि बनाये रक्खे.

    जवाब देंहटाएं
  7. bhai bahut hi joradar foto sahit. kya kahane janab apke. dhanyawad.

    जवाब देंहटाएं
  8. यमराजजी आप तक हमारी पुकार पहुँची.आप ने हमें पंसद किया.
    ऐसे ही प्रेमभाव बनाये रखो प्रभू दुखी आत्मा पर.
    जय हो यमराजकी.
    ओइम त्रबंक यजामहे सुगन्ध पुष्टि वर्धनम.
    उर्वाराक बंधनात मृत्युमोक्षमामृतात.

    जवाब देंहटाएं
  9. हमको तलफत वे छोड़ गये,अब जाय फँसे हैं औरन ते

    ये नज़ाक़त वाला तलफत तो रीति काव्य के बाद आपके काव्य में ही नज़र आया है। । तलफत की महिमा कहीं कमतर नहीं हुई।
    तलफत की लाज रखने के लिए सभी रीतिकालीन कवि आपको आशीर्वाद देते होंगे। वे स्वर्ग में होंगे या नर्क में ये नहीं कह सकते क्योंकि उनके ज़माने के सयानों ने उन्हें खूब लताड़ा था कि ज़माने को बिगाड़ रहे हैं मुए....जाहिर है नर्क की दुआएं ही देते होंगे।
    शुभकामनाएं....

    जवाब देंहटाएं
  10. अजीत साहब हमारे पुरखे ब्रजभूमि के थे.मां रही तब तक घर में ब्रज ही चलती थी.20 साल से तालुक्क टूट गया ये तो पुरानी यादों की महक है.
    यहाँ शहर में तो सूरदास के शब्दों में कहें तो-
    ऊधो मोहि ब्रज बिसरत नाहीं.
    जा मथुरा कंचन की नगरी मनुमुक्ताहल जाहीं.
    या
    नीके रहियो जशुमति मैया.
    जा दिन ते हम तुम ते बिछुरे,
    काहु न कह्यो कनैह्या.
    और रही बात रीत काल की तो आपने बहुत इज़्ज़त दे दी साहब.
    बालापन की वा प्रीत सखी,
    अबहुँ हमको न भुलावत है.
    जिन पेड़ तले थे किलोल करे,
    बाकी सुधि टेर बुलावत है.
    तुम कौन से गांव बसे जाकर,
    मनमीत न कोई बतावत है.
    मुस्कानि तिहारी सुनौ सजनी.
    हमको दिन रात रुलावत है.
    अजीतजी आप की टिप्पणी ने अभी हमसे उपरोक्त पंक्तियां लिखवालीं .कविता लिखना हमारे लिए खेल नहीं साहब कलेजा मुँह को आता है.

    जवाब देंहटाएं
  11. गज़ब लिखा सुभाष भाई गज़ब्।

    जवाब देंहटाएं
  12. भाभीजी देखने मैं तो सुंदर हैं पर डाइटिंग की जरूरत है

    जवाब देंहटाएं
  13. डॉ.मिहिरजी आप चिकित्सा के क्षेत्र से जुड़े हैं. कविता के क्षेत्र में भाभियों का रोल नहीं होता वे सृष्टि के विकाश तक ही ठीक हैं.

    जवाब देंहटाएं
  14. बकौले ग़ालिब

    न सताईश की तमन्ना न सिले की परवाह,
    गर नहीं हैं मेरे अशआर में मानी न सही.

    तो दूसरी तरफ अपने अशआरों पे नाज़ भी हो आता है.बकौले मीर तक़ी मीर-
    सारे आलम पे हूँ,मैं छाया हुआ.
    मुस्तनद है मेरा फ़र्माया हुआ.

    आप की यह बात तो जनाब हम मानते हैं :)

    जवाब देंहटाएं
  15. ताऊ आगया अघोरी बाबा की धूनी पे एकै मंत्र में.
    बाबा की कुंडली जाग गयी है सो योगियों की तरह अंटशंट भाषा बोले है ऐपे ध्यान मत दीजो.और हां ताई का ध्यान रखिओ भैंस प्रेम के चक्कर में ताई को मत रुलाइयो.
    ताऊ ऐसे बाबा की धूनी पे भैंस का दूध दे जइयो भैंस के साथ तू मौज कर.कभी बाबा भी तेरी ही तरह भैंस प्रेमी था ससरी सब धोखा दे गयी बाबा वैरागी हो गया पर कभी कभी याद आ जाये पुरानी भैंसों की.आते रहियो ताऊ कोईकी बातों में मत अइयो तू आया ताऊ तो बाबा को बहतै अच्छा लगा जा मौज कर नेट की भैसों के साथ.

    जवाब देंहटाएं