सोमवार, 1 दिसंबर 2008

एक इक का जवाब सौ-सौ से.

ग़ज़ल
आसमां से जमी पे ला देंगे.
ये करिश्मा भी हम दिखा देंगे.

एक इक का जबाब सौ-सौ से,
ये समझ मत कि हम भुला देंगे.

उनकी शामत भी आयेगी इक दिन,
जो तुझे घर में आसरा देंगे.

खूँन पानी समझ बहाया है,
तेरी नस्लों को हम मिटा देंगे.

रास्ता देगा गर समन्दर तो,
एक ही बाण से सुखा देंगे.

राम की सेना सज रही अब तो,
तेरी लंका को अब जला देंगे.

आग तूने लगाई आ घर में,
खूँन से अपने हम बुझा देंगे.

राणा सांगा के हम तो वंशज हैं,
ज़ख्म अपने तो मुस्करा देंगे,

जान पर खेलकर के दीवाने,
तेरे टावर सभी उड़ा देंगे.

ता.01-12-08 समय-11-05AM.




4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढिया डाक्टर साहब !

    रामराम !

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  2. भाईसाहब,गहरा लिखा है लेकिन चिकने घड़ों पर आप साधारण शब्दों का पानी डालें तो कोई फर्क नहीं पड़ता इनकी तो हवा तब तंग होती है जब गालियों का तेज़ाब डाला जाता है।

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  3. आग तूने लगाई आ घर में,
    खूँन से अपने हम बुझा देंगे.

    राणा सांगा के हम तो वंशज हैं,
    ज़ख्म अपने तो मुस्करा देंगे,

    bahut khub

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  4. बहुत अच्छी गजलं। मुंबई बम कांड पर लिखी आपकी गजल बहुत बढिंया है। चूतिए चैन से सो रहे हैं को तो मेने कई जगह आपके नाम से कोड किया है।

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