बुधवार, 10 दिसंबर 2008

चूतिये लिस्ट थमाते देखो.

ग़ज़लरेत में नाव चलाते देखो.
चूतिये लिस्ट थमाते देखो.

हो शर्म गर तो मिटा दो उनको,
चोंचले अब न सुहाते देखो.

चीखें अब भी हैं सुनाई देतीं,
मीत अब भी हैं रुलाते देखो.

गोलियां बरसती थी लोगों पे,
सब रहे गाल बजाते देखो.

आग जब भी है घरों में लगती,
मसखरे कूए खुदाते देखो.

दोगलों को वो जलाने की जगह,
मोमबत्ती वो जलाते देखो.

आग पहुँची है कहाँ घर मेरे,
बस यही ख़ैर मनाते देखो.

खूँन पानी की तरह बहता है,
शौक से हैं वो बहाते देखों।
उपरोक्त तस्वीर मुंबई की मेहनतकश औरतों की है जिन्होंने आतंकी हमलों में अपना सबकुछ खो दिया।ये ग़ज़ल इन्हीं आम लोगों की बेबसी के नाम है जिस का बयाँ करने की क़ुव्वत ख़ाकसार में नहीं है.
ता.10-12-08 समय-12-10AM



















3 टिप्‍पणियां:

  1. लिस्ट देकर यदि लोग पाओगे
    तो फ़िर बिरयानी ही खिलाओगे
    कम है क्या मेहमान यहाँ
    जो लिस्ट से और बुलाओगे

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  2. भाईसाहब सूखे हुए आंसुओं के साथ सहमति है गुस्सा है मुट्ठियां भिंची हैं बस गालियां निकल रही हैं

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