बुधवार, 20 मई 2009

वो करें जो गोबर तो वाह- वाह करते हैं.

ग़ज़लब्लाग की सियासत में, खूब ये झमेले हैं.
लोग रोज़ आ, आ, के, अपनी अपनी पेले हैं.

वो करें जो गोबर तो, वाह-वाह करते हैं.
हम करें जो उँगली तो, मुश्किलों से झेले हैं.

भैंसियों के वे हुस्न पर, देखो जान छिड़के हैं,
पूँछ के सभी आशिक, सब के सब मचेले हैं.

ग़ज़ल पहले सिखलायें, बाद में वे खुद छापें,
वाह गुरु की ये लीला, खूब गायें चेले हैं.

लोटा ले के आ जाना, शाम ढले खेतों में,
इश्क के वे देखो तो, खेल कैसे खेले हैं.

शेर अपने सुनकर के वे तपाक से बोले,
वे सुधर नहीं सकते, जनम से करेले हैं.

ग़म को अपने समझेंगे, किसमें है भला कुव्वत,
पहले भी अकेले थे, अब भी हम अकेले हैं.

डॉ.सुभाष भदौरिया ता.19-5-09 समय 12-30 PM









3 टिप्‍पणियां:

  1. kya khub likha hai aapne. dil gardan gardan ho gaya. aap apne dil ke bhav sabdo mei piro kar kavita likhte ho or mei apne dil ke bhav se gooftgu karta hu . mere blog par aapka swagat hai . www.gooftgu.blogspot.com

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  2. मैं तो हँसते हँसते पढ़ रहा हूँ, बाकि गज़ल, शायरी, कविता..सब अपने लिए एक समान, ज्यादा ज्ञान ही नहीं है.

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  3. बढ़िया, मजेदार
    वीनस केसरी

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