शुक्रवार, 12 जून 2009

दिल का ये ज़ख्म है गहरा नहीं भरनेवाला.

ग़जल
दिल का ये ज़ख्म है गहरा नहीं भरने वाला.
तेरा शैदाई ये ज़ल्दी नहीं मरने वाला.

अपनी सीरत भी वो देखे तो समझ जायेगा,
आइना देख के हर रोज सँवरनेवाला.

पास आये तो वो मौज़ो की रवानी समझे,
दूर ही दूर से दरिया से गुज़रनेवाला.

जान लेवा ये तपिश और तमन्ना उसकी,
एक दिन बरसेगा हम पे वो मुकरनेवाला.

रंग होली के तो घिस घिस के उतारे उसने,
रंग मन का है कहाँ अब ये उतरनेवाला.

आँधिया ले गयीं पत्ते को उड़ाकर देखो,
शाख पर शान से बैठा था बिखरनेवाला.

दिल भी अपना है ये भूतों का बसेरा शायद,
कोई रुकता है कहाँ इसमें ठहरने वाला.

डॉ.सुभाष भदौरिया ता.12-6-09 समय 8-00 AM









9 टिप्‍पणियां:

  1. subhaashji, itni sundar foto aapne lagaai hai, bhai ye zakhma toh kabhi nahin bharne wala....
    BADHAI BEHTAREEN RACHNA K LIYE>>>>>>>>>

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  2. अपनी सीरत भी वो देखे समझ जायेगा
    आईना देख कर् रोज़ संवरने वाल
    बहुत सुन्दर बधाइ

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  3. bahut hi achchhe sher .......har ek panktiyan moti ki ladiyan lagati hai

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  4. वाह !! लाजवाब !!!

    बहुत ही सुन्दर इस रचना के लिए बधाई.

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  5. वाह !! लाजवाब !!!

    बहुत ही सुन्दर इस रचना के लिए बधाई.

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  6. खत्रीजी,निर्मलाजी,ओम आर्यजी, संजयजी. रंजनाजी आप सभी की मुहब्बत ने आज गरीब को मालामाल कर दिया.शुक्रिया साहेबान.
    इन दिनों अहमदाबाद से दूर एक ऐसे गाँव में जलावतन हूँ जहाँ उर्दू तो क्या हिन्दी का भी अखबार नहीं आता.हालात ऐसे संगीन की क्या कहूँ.जून जुलाई का महीना कट जाय तब ही पता चलेगा कि अगला मुकाम कहां होगा.अभी मित्रों ने बताया ट्रांसफर की घात अभी फिर होने ही वाली है.दस्त दरिया या रेगज़ार देखें क्या मिलता है.

    मैं अपने ब्लाग पर लगे टिप्पणी मोडरेशन को हटा रहा हूँ पाठकों को दुबारा टिप्पणी करने आना पड़ता है.
    अनामी प्रेत आत्मायें ज़ख्मो पर और भी नश्तर चुभो जाती थीं ये बंदिश उन्हीं के लिए थी. पर तन्हाई के इस ख़ौफनाक आलम में उनकी दस्तक भी सुकून ही देगी उनका भी स्वागत है.

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  7. बहुत उम्दा किस्म के शेरों के लिये आपकी बधाई...
    बहुत बेहतरीन गजल है
    पढ़वाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

    वीनस केसरी

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