सोमवार, 28 सितंबर 2009

घर छोड़ के ना जाओ सैंयां हम लोग पड़ें तोहरे पैंयां.

ग़ज़ल
अय ब्लागे-चमन देखो तो सही ये कैसे ज़माने आये हैं.
ये कल के लेंड़ हगे हमको ब्लागिंग समझाने आये हैं.

चड्डी को उतारे फिरते थे अपने जो मुहल्ले के छोरे,
आया जो बुढ़ापा अब अपना आँखें वो दिखाने आये हैं.

सब मिल के करें ऐसी-तैसी वे सहन करें बोलो कब तक ?
बाणी को लगाकर वे ताला अब मौन सिखाने आये हैं.

घर छोड़ के ना जाओ सैंयां, हम लोग पड़े तोहरे पैंया,
होटों पे सभी के अब देखो कैसे ये तराने आये हैं.

आँखों में बचाकर के रखना अश्कों की बरसातें लोगो,
बातों में अंगारे लेकर के कुछ आग लगाने आये हैं.

मैंदा को कभी हम ना छोड़ें, धड़ भी तो लड़े गिरते गिरते,
पुरखों से हमारे पास यही हाथों में ख़ज़ाने आये हैं।

डॉ.सुभाष भदौरिया।ता.२८-०९-०९

आज ज्यों ही ब्लागबाणी को खोला और जो देखा वो बहुत ही पीड़ा दायक था.
कल ही तो अपने कॉलेज के छात्रों को ब्लागबाणी हिन्दी ब्लाग का सबसे बड़ा एग्रीगेटर इंटरनेट के माध्यम से बताया था. इस पर तुरंत हिन्दी ब्लाग जगत की गतविधियों का पता चलता है. अब उसके निधन की सूचना देना बहुत ही दुष्कर होगा. जो लोग पंसद और ना पंसद का झमेला ले के बैठे हैं उनसे इतना ही कहना है कि,
वक्त सौ मुंसिफ़ों का मुंसिफ़ है वक्त आयेगा इंतज़ार करो.
ब्लागबाणी के कर्ता धर्ता मानसिक शांति के लिए इसे बंद कर रहे हैं जब कि ऐसा नहीं होगा. ब्लाग जगत के भूत प्रेत, चुड़ैल, पिशाच उन्हें स्वप्न में भी दिखायी देंगे. वे और व्यग्र हो जायेंगे शयनकक्ष में भी दुष्ट आत्माओं का प्रवेश हो जायेगा सावधान.
बेहतर है हमारे जैसै ओझाओं की सेवा लें और इन तमाम व्याधाओं से मुक्त हों. आज आसुरी शक्तिओं पर विजय का दिन था और उन्हें वैराग्य सूझा.
हिन्दी कवि की पंक्तियां याद आगयी –
जिसकी पूँछ उठा के देखा मादा निकला.
किसी ने थोड़ा क्या उकसाया कि छोड कर मैदान चल दिये. जाओ जब देश जैसै तैसे चल रहा है तो ब्लॉग लीला भी ज़ारी रहेगी. आमीन.







3 टिप्‍पणियां:

  1. एक सरल पर मार्मिक पोस्ट। धन्यवाद।

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  2. बहुत खूब सुभाषजी,
    पर अब तो आप खुश हो जाएं। ब्लागवाणी शुरू हो चुका है।
    जै जै

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  3. अजीतजी
    किसी की आखिरी हिचकी किसी की दिल्लगी होगी.
    हमतो ब्लॉगवाणी के आकस्मिक आत्मघात पर शोकग्रस्त हैं.उनका पिंडदान करते हुए उपरोक्त ग़ज़ल के रूप में मर्सिया कह बैठे.
    हमने अन्य ब्लॉगरों की टंकी पर चढ़ के लौटने की लीला देखी थी.
    पर एक जिम्मेदार एग्रीगेटर भी ये खेल करेगा पता नहीं था.
    हमारे दुख का आप अंदा़ज़ा लगा सकते हैं कि हम इस हादसे से अभी तक नहीं उबरे.भले लोग नाचे.

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