सोमवार, 4 जनवरी 2010

अश्क बहते नहीं उम्र भर,ग़म न कर अय मेरे हमसफ़र.

ग़ज़ल
तुम तपिश दिल की बढ़ने तो दो, बर्फ पिघलेगी ही एक दिन.
तोड़कर सारी जंज़ीरें वो, घर से निकलेगी ही एक दिन.

शौक़ जलने का परवाने को, होगया आजकल इस कदर,
लाख कोशिश करे कोई भी, शम्आ मचलेगी ही एक दिन.

अश्क बहते नहीं उम्र भर, ग़म न कर अय मेरे हमसफ़र.
बात बिगड़ी है जो आजकल, वो तो सँभलेगी ही एक दिन.

आँसुओं को सँभालो ज़रा, मोतियों को बिखरने न दो,
उखड़ी उखड़ी है तबियत ये जो, वो तो बहलेगी ही एक दिन.

तू हवाओं से खुद को बचा, मान ले बात ओ दिलरुबा,
आग दिल में लगी देखना,वो तो फैलेगी ही एक दिन.

लोग समझें इसे दिल्लगी, जानलेवा है ये शायरी,
बाद मरने के मेरे इसे, दुनियां समझेगी ही एक दिन.

अपने चाहने वालों और जलने वालों को बताऊँ कि ये ता.24-12-09 के रोज़ गुजरात युनिवर्सिटी अहमदाबाद आफिस कामकाज़ से गया था. बिल्डिंग से निकलते ही बाइक से आ रहे है नये साल की मस्ती में मस्त युवक-यवती के ग्रुप ने पीछे से ऐसी टक्कर मारी की बाइक के मिरर ने दिल के बिलकुल नीचे पसली में हिट किया.
टक्कर मारने वाले ही घर के पास के अस्पताल ले गये शरीफ बच्चे थे. खासकर उनके साथ की युवती अपनी पानी की बोतल देते कह रही थी अंकल पानी पी लो. अंकल हमने जान बूझकर नहीं किया. तो दूसरा लड़का कह रहा था हम लोग एम.बी.ए. कर रहे हैं हम लोग किसी से झगड़ा भी नहीं करते. उन्हें डर था पुलिस केश न हो जाये किसी ने 108 इमरजंशीवेन बुलादी थी. मुझे मारे दर्द के गुस्सा भी आ रहा था और अपनी किसम्त पर हँसना भी हो गयी छुट्टी एक दो महीने की. दो साल पहले पतंग के डोरे से जो एक्सीडेंट हुआ था पांव की एड़ी में पड़ा स्कू अपनी मौज़ूदगी का अहसास कराता रहता है और ये फिर से नई इनायत.
आपरेशन थियेटर में डॉक्टर ने स्क्रीन पर देखकर कहा पसली में माइनर क्रेक है चिन्ता की बात नहीं. दर्द तो होगा ही.
दिल तो पहले से ही ज़ख्मी था पर पसली की हड्डी का दर्द दिल के दर्द पर भारी पड़ा.
पूरे 10 दिन के बाद हड्डी का दर्द बंद हुआ तो दिल का दर्द फिर उठा ये ग़ज़ल उसी का परिणाम है जो आप सभी को नये वर्ष पर पेश कर रहा हूँ.
आपकी नवाजिश का तलबगार पहले भी था आज भी हूँ. अपने बहुत ही संज़ीदा पाठक अशोक मधुपजी को वो टिप्पणी बहुत याद आयी तुम्हें और तुम्हारी ग़ज़लों को ईश्वर बुरी नज़र से बचाये.
ये उसी दिल से निकली दुआ का परिणाम है कि आपके सामने फिर से अपनी जाने ग़ज़ल के साथ हूँ.
डॉ. सुभाष भदौरिया. ता.04-01-10

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी स्वास्थ्य लाभ की कामनाओं के साथ ...आपको नव वर्ष की शुभकामनाएं .....
    तुम तपिश दिल की बढ़ने दो , ....भावनाओं के मोतिओं में पिरी हुयी सुन्दर ग़ज़ल

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  2. अब कैसे हैं आप? क्या कहें नयी पौध की इस बेपरवाह नस्ल को...
    गज़ल बहुत सुन्दर है.

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  3. aap jaldi hi thik ho jayein yahi bhagwan se prarthna hai.............gazal sundar hai.

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  4. अश्क बहते नहीं उम्र भर, ग़म न कर अय मेरे हमसफ़र.
    बात बिगड़ी है जो आजकल, वो तो सँभलेगी ही एक दिन.

    वाह सुभाष जी वाह...मुझे लगा जैसे ये शेर आपने मेरी तरफ से खुद को कह दिया है...आप तो बने ही फौलाद के हैं जिस्म और जेहन दोनों से फिर भला बच्चों की मोटर सायकिल की ये दानिश्ता सी टक्कर आपका क्या बिगड़ लेती? प्रार्थना करता हूँ की आप जल्द से ठीक हो जाएँ और फिर से उसी अंदाज़ में ठहाके लगायें जिसे सुन कर लोग कभी खिलखिलाते हैं तो कभी झल्लाते हैं...

    नीरज

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  5. 1-पुख़राज़ साहिबा आपका हमारे ब्लाग पर स्वागत है. आपकी शुभकामनायें भी क़बूल उनकी सख़्त ज़रूरत भी है मुझे पिछला वर्ष काफी दर्दनाक जो ग़ुज़रा.
    आपने अपने ब्लाग पर दिलचश्प ग़ज़लों की ओडयो वीडियो लगा रखी है.सुनकर काफी सुकून मिला.
    2-वंदनाजी अपनी ब्लाग पर 10 दिन कीग़ैरहाज़िरी की कैफ़ियत देनी चाही थी पता न था आप जैसी कद्रदानों को तकलीफ़ होगी.
    उर्दू का एक शेर है-

    उन्हें भी अपने ग़म में और मुब्तिला न करो.
    उदास हो तो किसी दोस्त से मिला न करो.

    नीरज जी सही कह रहे बहुत ही सख़्तजान हूँ.टूटफूट तो चलती रहती है.
    एक दम फिट तो नहीं पर अब करवट बदल लेता हूँ बाकी बायें तरफ की पसली की हड्डी के क्रेक ने दायीं तरफ लेटने पर मज़बूर कर दिया था.चित्त का तो सवाल ही नहीं उठता.
    पहले दायें बायें देख कर सड़क पर चला करता था अब इससे सीखा कि पीछे भी देखो भाई किसको मस्ती चढ़े और आप पर क़यामत आ जाये.और लोगों गाने लगें एक्सीडेंट हो गया रब्बा रब्बा.
    भले सामने वाला पूरी रात अम्मा अम्मा चिल्लायें.

    3- वंदनाजी बिल्कुल ठीक ही समझो ग़ज़ल विद्या के साथ योग विद्या भी जानता हूँ अंदर की चोट है सो अभी इस्तेमाल नहीं कर रहा ज़ल्द उसका लाभ लूंगा. डॉक्टर ने एक बात भार देकर कही थी दर्द तो सहना ही पड़ेगा हलन चलन वाली जगह है.
    दर्द तो सहते सहते उम्र गुज़री है सो उसकी कहां परवाह.
    4- नीरजजी बकौले ग़ालिब-
    ये कहां की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह, (उपदेशक)
    कोई चारासाज़ होता कोई ग़मगुसार होता.

    सरकारी नौकरी में ट्रांसफर का शस्त्र बड़ा घातक होता है. प्रमोशन के नाम पर कमबख़्तों ने ऐसी जगह पटका है कि क्या कहें.परिवार से 150 किमी.दूर सर्द रातों में हड्डी़ का दर्द दिल के दर्द पर भारी है.तुम खिलखिलाने और ठहाका लगाने की बात करते हो.अभी गाडी़ ट्रेक पर है.
    हड्डी की टूटफूट की रिपेरिंग हो जायेगी दिल का इलाज़ कहां.
    बस ग़ज़लें कह कह कर ग़म ग़लत कर रहे हैं आपको दिल्लगी सूझी है.
    कहीं ये तो नहीं बकौले ग़ालिब-

    ज़िक्र उस परीवश का और फिर बयां अपना.
    बन गया रक़ीब आखिर था जो राज़दा अपना.

    आजकल परीवश का ही तो हम ज़िक्र कर रहे हैं जनाब आप किसी और का कराना चाहते हैं.आते जाते रहिए.

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