शुक्रवार, 2 अप्रैल 2010

मेरी पगड़ी को जो उछालेंगे.

ग़ज़लतुमको हम सब को बेंच डालेंगे.
मसखरे देश क्या सँभालेंगे.

ख़ैर अपनी मनायें वे सर की,
मेरी पगड़ी को जो उछालेंगे.

उनकी फितरत तो सब ही जाने हैं,
आस्तीनों में साँप पालेंगे.

लोग भी दोगलें कहां कम हैं,
इन हकीमों से ही दवा लेंगे.

देशद्रोही जो हाथ आये तो ,
हम भी फिर हसरतें निकालेंगे.

आग से खेलने के चक्कर में,
हाथ क्या घर भी वो जला लेंगे
.

पिछले कई दिनों से गुजरात को अछूत मान महानायक अमिताभ बच्चन के अपमान के साथ साथ तमाम गुजरातियों को अपमानित करने वाले उन तमाम नामी गिरामी शख्शियत के नाम ये ग़ज़ल है. हम गुजरात के लोग सभी मिलकर अपने पुराने ज़ख्मों को भुला कर आगे की सुधि लेह में लगे हैं और वे बार बार अतीत की याद दिला हमें आपस में लड़ा अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं.
ता.01-4-10 के रोज राज्य के मुख्यमंत्रीश्री नरेन्द्रमोदीजी ने आन लाइन डी.टी.एच. के माधयम से राज्य के तमाम नागरिकों को पढ़े गुजरात का आह्वाहन करते हुए कहां गुजरात की स्वर्णिम जयन्ती के अवसर पर मैं अपने राज्य के तमाम नागरिकों को इस ज्ञान की सदी में पुस्तकों से रिश्ता बनाने की अपील की. अच्छी पुस्तकें अँधकार में मार्ग प्रशस्त करेंगी. बुके की स्वागत परंपरा की जगह अब बुक से स्वागत की शुरुआत की जाये. इससे पर्यावरण की रक्षा होगी. गाँधीनगर के सभा हाल में पधारे तमाम राज्य के उच्च साहित्यकार आला अफ्सर और मंत्रियों को उन्होंने पुस्तक महिमा का महत्व समझाते हुए दूर दराज़ हमारे जैसे गाँव में उन्हें निहारते कालेज स्कूल के अध्यापक छात्र छात्राओं युवकों को राज्य की स्वर्ण जयंति पर 100 घंटे राज्य की अपनी मन पसंन्द सेवा के लिए अर्पित करने को कहा.
हमारा मानना है कि जब गुजरात की अस्मिता को लेकर बार बार चुनौती दी जा रही हो तो सिर्फ पढ़े गुजरात के साथ साथ लिखे गुजरात की कार्यवाही भी ज़रूरी है.खैर ये काम तो हम वर्षों से कर रहे हैं. रही मुख्य मंत्रीमोदीजी की 100 घंटे की बात तो हमने गुजरात को अपनी उम्र दे दी है. परिवार से दूर ज़लावतन गुजरात की इबादत में लगे हैं. गुजरात के भाइचारा एवं विकास में राष्ट्र का विकाश निहित है.
हम अपने चाहने वालों को बतायें हमने अपनी तमाम समस्यायों का निदान स्वयं कर लिया है. हमारी तीन महीने से रुकी तनखाह एरियर्स सब ले लिए. हमें पता है-

ये बज़्मेंमय है यहां कोताह दस्ती में है महरूमी,
उठा ले हाथ में बढ़ कर ये मीना उसी का है.

एक बार फिर हम अदब के मैदान में हाज़िर हैं हमारे चाहने वाले हमारा इस्तक़बाल करें.आमीन. डॉ. सुभाष भदौरिया ता.02-4-10

4 टिप्‍पणियां:

  1. गुजरात और उसकी तरक्की से जलने वालों को मुंह तोड़ जवाब...वो भी बेहद निराले अंदाज़ में...आपका जवाब नहीं सुभाष जी..दाद कबूल करें...
    नीरज

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  2. आग से खेलने के चक्कर में,
    हाथ क्या घर भी वो जला लेंगे.
    शानदार गजल
    अशोक मधुप

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  3. 1-अशोक दद्दा सादर प्रणाम.आपकी हौसला अफ़ज़ाई हम वतन परस्तों को जूझने का पैगाम देती है. आप बहुत ही संज़ीदा देशप्रेमी हमारे पाठक हैं.ख़ैर ख़बर लेते रहिओ श्रीमान.
    2- नीरजजी आप जैसे मर्मज्ञ पाठकों की बदौलत ही इस जी हुजूरी के दौर में लीक से हटकर कुछ कहने की हिम्मत सजों पाते हैं. महीने भर से तनखाह न मिलने पर अहमदाबाद में रह रहे परिवार की उदासी और बेचेनी का हल ढ़ूढ़ने में समय निकल गया. गोधरा से गाँधीनगर कचेहरी के ट्रेज़री देवताओं की चौखट पर दस्तक देते देते ग़ज़ल क्या सब भूल गये.खैर मामला हल कर लिया.
    3- संजयजी अहमदाबाद कभी आना हुआ तो आप से मिलकर बहुत कुछ
    सीखना है खासकर ब्लाग तकनीक. आपकी भाषागत एवं वैचारिक आभिजात्य गरिमा का पहले भी कायल रहा हूँ. खास कर आपका मात्र गुजरात चिंतन ही नही राष्ट्र चिंतन मेरे आकर्षण का केन्द रहा है.
    रही इतने दिन गायब रहने की बात तो अभियान पर थे. साहब.अहमदाबाद रहती पत्नी दो महीने तनखाह न मिलने पर तो जैसे तैसे घर चला लिया बाद में अच्छी खासी खिचाई कर दी.सो उसका हल निकालने में समय गुज़र गया.
    गुजरात सरकार में कोई माई बाप नहीं यतीम हैं साहब सो ज़ुल्म सहते रहते हैं.पर हिम्मत हारना नहीं सीखा.
    आपको गुजराती शायर मरीज़ साहब की पंक्तियों से कहें तो-

    कहो दुश्मन ने दरिया जेम हुँ पाछो ज़रूर आवीश,
    ए मारी ओट जोइ नी किनारे घर बनावे छे.

    આપનું બ્લાગ પર આવવુ મારા માટે ખૂબજ પ્રેરણા દાયક હોય છે.
    આત્મ જન ને વળી નિમંત્રણ શું રાત દિન આવકાર છે આવો.

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