शनिवार, 1 मई 2010

जीवननी समी सांजे मारे ज़ख़्मोनी यादी जोवीती.

गुजराती ग़ज़ल
ખુશ્બૂમાં ખીલેલા ફૂલ હતાં, ઉર્મિમાં ડૂબેલા જામ હતા.
શું આંસુનો ભૂતકાળ હતો-શું આંસુનાં પણ નામ હતા.

હુઁ ચાંદની રાતે નીકળ્યોતો, ને મારી સફર ચર્ચાઈ ગયી,
કંઈ મંઝિલ પણ મશહૂર હતી, કંઈ રસ્તા પણ બદનામ હતા.

જીવનની સમી સાંજે મારે જખ્મોની યાદી જોવીતી,
બહુ ઓછા પાના જોઈ શક્યો, બહુ અંગત અંગત નામ હતા.

થોડાક ખુલાસા કરવાતા થોડીક શિકાયત કરવીતી,
ઓ મોત જરા રોકાઈ જતે બે-ચાર મને પણ કામ હતા. (સૈફ પાલનપુરી.)
गुजराती ग़ज़ल के मर्हूम शायर सैफ पालनपुरी को गुजरात राज्य की स्वर्णिम जयंती पर बा अदब याद करते हुए. डॉ. सुभाष भदौरिया.
राज्य के मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्रमोदी के पंसदीदा अभियान वांचे गुजरात( पढ़े गुजरात के तहत मैं अपने ब्लाग पर उर्दू भाषा के बाद सबसे अधिक गुजराती भाषा में कहीं गयीं सशक्त गुजराती ग़ज़लों से मात्र गुजराती ही नहीं दुनियाँ की अन्य भाषाओं ख़ास कर उर्दू हिन्दी भाषाओं के मर्मज्ञों का ध्यान आकर्षित करूँगा. કોઇ ગુજરાતી નો જાણકાર મને ગુજરાતીમાં ટિપ્પણી કરી મારી ભૂલોનો જણાવશો તો તેનો મને ચૌક્કસ આનંદ થશે.
આજે ગુજરાતમાં થી ધીરે ધીરે ગુજરાતી અન્યભાષાઓની જેમ લુપ્તતાની ઓર જઈ રહેલ છે. ગુજરાતી ભાષા ના પ્રખર આલોચક સુમનશાહ સાહેબે મને મારી પ્રિંસીપલની તાલીમ દરમ્યાન ખૂબજ વ્યથા અને આગ્રહ સાથે કહ્યુ હતું કે હું હિન્દી ની સાથે ગુજરાતી ગઝલો ની મારા બ્લાગ પર બાત કરુઁ. ગુજરાતી હિન્દી ઉર્દૂ ભાષાની ગઝલોનો મારો અભ્યાસ છે મારી પીએચ.ડી.ની થીસિસનો તે વિષય હતો..
અને જ્યારે રાજ્ય પ્રશાસન ના મુખિયા માનનીય મુખ્યમંત્રીશ્રી વાચેં ગુજરાત અભિયાન ચલાવી રહ્યા હોય તો આજે ગુજરાત ની સ્વર્ણ જયંતી વર્ષ નિમિત્તે મારા પ્રયાસના પ્રારમ્ભ કરતા હું આનંદની લાગણી અનુભવુ છું. યાહોમ કરી ને પડું ફતહ છે આગે.
અને હાં હાલમાં ગુજરાતી ભાષાને ફરી સ્થાપિત કરવા જો ગુજરાતિયો નહીં જાગે નહીં વાચેં નહી લખે તો તેમની આવનાર પીઢી ને ચૌક્કસ નુકસાન થશે. નુકશાનનીબાબત આવે તો ગુજરાતિયો નહીં જપે. તેઓ આગળ આવશેજ તેની મને ખાતરી છે.
ડૉ.સુભાષ ભદૌરિયા. પ્રિંસીપલ સરકારી વિનયન કોલેજ શહેરા. જિલ્લો પંચમહાલ. ગુજરાત.
वैसे गुजराती ग़ज़ल की संरचना उर्दू ग़ज़ल की तरह ही है वही काफिया,रदीफ,मतला, वज़्न की वंदिशें. ये गुजराती ग़ज़लकारों ने बखूबी निभाई हैं. 1987 में अपने शोध प्रबंध स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी गुजराती ग़ज़ल की तुलना पर काम करते समय पालनपुर आर्टस कोलेज में अपने शैक्षिक कार्य की शुरुआत के साथ हिन्दी गुजराती ग़ज़ल पर शोध कार्य भी पालनपुर में ठीक ढंग से हुआ था. उन दिनों गुजराती ग़ज़ल के विद्वान रचनाकार मुसाफिर पालनपुरी के साथ जाने कितनी तन्हा रातों में मात्र हिन्दी गुजराती ही नहीं उर्दू ग़ज़लों की संज़ीदगी से चर्चा होती थी.
गुजरात उर्दूभाषा के बाबाआदम वली गुजराती की सरज़मी मानी गई है. उर्दू भाषा के साथ हिन्दी और अब धीरे से गुजरात से गुजराती भाषा का गायब होना अनायास नहीं हैं. अँग्रेजी भाषा की चकाचौध के साथ अपनी मातृभाषा से विलग होना अपनी संस्कृति से अलग होने जैसा है. यूँ तो हमारे गुजरात राज्य प्रशासन की भाषा गुजराती होने के कारण तमाम सरकारी कर्मचारियोँ ख़ास कर राज्यपात्रित अफ्सरों के लिए गुजराती हिन्दी भाषा की परीक्षा पास करना अनिवार्य है. राज्य में लुप्त हो चुकी उर्दू और लुप्त होने जा रही हिन्दी के साथ गुजराती भी हासिये पर चली गयी है. संस्कृत तो वैसे ही अंतिम शय्या पर है.
कोलेजों में उर्दू भाषा के साथ साथ अरबी,फारसी सरकार की सबसे पुरानी गुजरात आर्टस सायंस कोलेज अहमदाबाद में आखिरी सांस ले रही है. वर्षों से उर्दू भाषा के केन्द्र रहे बहाउद्दीन जूनागढ़ कोलेज से उर्दू भाषा का बंद होना दुखद है.
एक तरफ राज्य के मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्रमोदीजी का ब्लाग अँग्रेजी, संस्कृत,गुजराती,हिन्दी,मराठी, में कार्यरत होने से उनके तमाम भाषा प्रेम का परिचायक है. तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्रीजी के विधान सभा क्षेत्र की सरकारी श्री के.का. शास्त्री कालेज में हिन्दी भाषा का न होना बड़े आश्चर्य की बात है. श्री. के.का. शास्त्रीजी गुजराती. संस्कृत, हिन्दी भाषा के प्रखर पंडित थे. मेरे पीएच.डी. गाइड डॉ.अंबाशंकर नागरजी ने उनके पास कई बार मार्गदर्शन हेतु भेजा था. उनकी आत्मा अक्सर मुझे झिंझोड़ते हुए कहती है वत्स तुम मुख्यमंत्रीजी को शिकायत करो कि उन्होंने अपने ब्लाग को हिन्दी में लिख कर जो राष्ट्रभाषा को सम्मान दिया है तो अपने क्षेत्र की सरकारी कोलेज में कालेज में हिन्दी भाषा को भी शुरु कराओ. पर वहां की प्रिंसीपल श्रीमती गीता पंड्या नहीं करने दे रही है उन्हें डर है कि कभी हिन्दी का प्रिंसीपल उनकी जगह आ गया. तो उन्हें बाहर जाना पड़ेगा. वे अर्थशास्त्र विषय की हैं हिन्दी भाषा को फालतू बताती है.
पर मुख्यमंत्रीश्री मोदीजी का हिन्दी प्रेम लोगों के लिए अज्ञात नहीं है. इस मणीनगर क्षेत्र के अधिकतर निवासी छात्र छात्रायें हिन्दी भाषी हैं उन्हें शहर की दूर की कालेजों में नदी पार पढ़ने जाना पड़ता है.
उर्दू हिन्दी पढ़ने के लिए मुख्यमंत्री के कार्य क्षेत्र मणीनगर के गरीब मुसलमान भी दूर की गुजरात कोलेज में जाते हैं. मुख्यमंत्रीजी के कार्यक्षेत्र में खुली ये कालेज अपने आपमें अद्वितीय है. पर अपने निजी स्वार्थो के कारण कालेज प्रशासन बाधा स्वरूप है ये जानने वाले जानते हैं मुख्यमंत्रीजी भी जाने तो अच्छा है उनके जानने से शिक्षा सचिव, शिक्षा कमिश्नर अपने आप जान जायेंगे. राष्ट्रभाषा हिन्दी के साथ उर्दू को पानी लग जाये तो फिर बात ही क्या है इसी उम्मीद के साथ.आमीन. डॉ. सुभाष भदौरिया.ता. 01-05-10

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