शनिवार, 14 अगस्त 2010

हाथ मेरे गिलास रहने दे.

ग़ज़ल
मेरे होठों पे प्यास रहने दे.
हाथ मेरे गिलास रहने दे.

छीन ले सारी तू खुशी मेरी,
ग़म मेरे ख़ास ख़ास रहने दे.

मुस्कराने को कुछ नहीं अब तो,
मुझको यूँ ही उदास रहने दे.

अश्क ही देते हैं तसल्ली अब,
ये ऋतु बारेमास रहने दे.

इश्क पारो का खा गया मुझको,
तू मुझे देवदास रहने दे.

यूँ ज़बा पर न तू लगा ताले,
कुछ तो दिल की भड़ास रहने दे.

तलख़ियों में हयात बसती है,
देख अपनी मिठास रहने दे,

मेरी आँखों की रोशनी लेले,
मेरे दिल की उजास रहने दे.

दिल से उठने दे कुछ धुँआ पहले,
देख अँधी छपास रहने दे.

डॉ.सुभाष भदौरिया ता.14-08-2010







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