मंगलवार, 17 अगस्त 2010

ज़ख़्मी गुजरात को सँभाले है.

गज़ल
मुस्करा कर वो जान डाले है.
ज़ख़्मी गुजरात को सँभाले है.

उसकी ख़ुश्बू से शहर महके है,
बातों बातों में जी चुरा ले है.

मेज़बानी में क्या करें ख़ातिर ?
जान,दिल उसके सब हवाले है.

एक वो है जो गिराता अक्सर,
एक ये है जो आ उठाले है.

मुद्दतों तक रहे असर उसका,
उसकी खुश्बू में जो नहाले है.

ताज़ उसके ही सर पे रहता है,
सरफिरों से जो सर बचाले है.

ख़ैर अपनी मनाये वो सर की,
मेरी पगड़ी को जो उछाले है.

डॉ. सुभाष भदौरिया ता.17-08-2010

अहमदाबाद में अमिताभजी आये हुए हैं. वे ख़ुश्बू गुजरात की प्रवास निगम के अंतर्गत कार्य कर रहे हैं ये उनका दूसरा दौरा है. उनके प्रथम दौरे पर मैने उनपर वे गोधरा क्यों नहीं आये इस शिकवेगिले के कारण उन्हें नज़र करते हुए ग़ज़ल लिखी थी.
गुजरात के साहब बोलो तो जलते हुए मंजर देखे हैं?
कृपया इस लिंक पर देखे. http://subhashbhadauria.blogspot.com/2010/06/blog-post_16.html
इस बुरे वक्त में उनका गुजरात आना सिर्फ मेरे लिए ही नहीँ उन तमाम गुजरतियों को सुखकर लगेगा जो गुजरात की उन्नति चाहते हैं. उपरोक्त गज़ल इसी पसमंज़र की है.
मैने अमिताभजी का आज ब्लाग देखा http://bigb.bigadda.com/
अहमदाबाद में राष्ट्रपिता गाँधी आश्रम के सानिध्य में उनकी भावविभोर तस्वीरों के साथ उनके विचार मननीय है. काश वे हिन्दी में भी लिखते तो सोने में और भी सुहागा होता.
प्रिंसीपल डॉ.सुभाष भदौरिया ,सरकारी आर्टस कॉलेज शहेरा. मोब.97249 49570






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