सोमवार, 15 नवंबर 2010

वेद से लेकर वेब तक.





वेद से लेकर वेब तक.
अहमदाबाद में त्रिदिवसीय राष्ट्रीय वेद सम्मेलन. का उद्घाटन दिनां- १२-११-२०१० गुजरात विश्वविद्यालय के सेनेट हाल में सुब्ह ११ बजे राज्य की महामहिम राज्यपाल महोदया डॉ.कमलाजी के कर कमलों द्वारा दीप प्राग्टय से हुआ. गुजरात राज्य की स्थापना की स्वर्ण जयन्ती गुजरात विश्वविद्यालय की हीरक जयन्ती तथा महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती १२५वीं निर्वाण जयन्ती के त्रिवेणी संगम पर भाषा भवन के संस्कत विभाग एवं स्थानीय आर्य समाज के संयुक्त तत्वाधान में इस संगोष्ठी में संपूर्ण भारत वर्ष से पधारे संस्कृत भाषा के विद्वान एवं वेद प्रेमियों ने भारी संख्या में हिस्सा लिया. खचाखच भरे सेनेट हाल में बाल्कनी कक्ष में प्रतिभागी के रूपमें हमने भी अपनी उपस्थित दर्ज की. वैदिक मंत्रों के गान ने समा बाँध रखा था.
अपने वक्तव्य में महामहिम राज्यपाल डॉ.कमलाजी ने वेदों की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वेद मानव संस्कृति की प्राचीन धरोहर हैं वे विज्ञान,खगोल,ज्योतिष,गणित, पर्यावरण रक्षा के साथ साथ वसुदैव कुंटम्बकम की भावना का संदेश देते हैं. उन्होंने कहा कि लुप्त हो रही संस्कृत भाषा की रक्षा की लड़ाई अपने मंत्रीकाल में राजस्थान में उन्होंने खुद लड़ी है. उनकी डॉक्टर की पदवी भी संसकृत विद्यालय की ही देन है. महामहिम राज्यपालजी ने संस्कृत भाषा के अपने अपार प्रेम के कारण ही अपने अतयंत व्यस्त कार्यक्रम में वेद संगोष्ठी में उपस्थित रहकर सभी को आशीर्वाद एवं आधुनिक संदर्भ में वेदों की उपोयोगिता एवं उनकी रक्षा प्रचार प्रसार हेतु विचार विनमय एवं कार्य करने का संदेश दिया.
महामहिम राज्यपाल महोदया की ये भावमयी अपील हमें छू गयी. इस कार्यक्रम के निमंत्रण पत्र से लेकर समापन सत्र तक का स्लाइडशो हमने अपने ब्लाग पर लगाया है जिसे ध्यान में रख कर इस रिपोर्ट को आप देखने का कष्ट करें.


साथ ही हमें लगता है राज्यपाल महोदया को गुजरात में लुप्त हो रही संस्कृत भाषा के साथ साथ राष्ट्रभाषा हिन्दी की लड़ाई की अगुवानी भी लेनी होगी वे राज्य की तमाम विश्वविद्यालय की कुलाधिपति भी हैं इस नाते उनका दायित्व भी है कि वे जाने कि राष्ट्रभाषा हिन्दी गुजरात की स्कूलों कोलेजों से कैसे पिछले पाँच वर्षो में कैसे गाइब हो गयी. मुख्यमंत्री श्रीनरेन्द्र मोदीजी के विधान सभा क्षेत्र की प्रतिष्ठित श्री.के.का. शास्त्री कोलेज में तमाम विषय हैं पर राष्‍ट्रभाषा हिन्दी ५ वर्ष से नहीं जब कि सबसे ज्यादा हिन्दी भाषी इसी क्षेत्र में निवास करते हैं पर उनकी कौन सुनता हाल में ही उच्चशिक्षाविभाग द्वारा राज्य में प्राइवेट कोलेजों में लगभग ३०० से अधिक अध्यापकों की नियुक्ति का कार्यक्रम हुआ उसमें हिन्दी विषय की एक भी जगह नहीं थी. क्यों ? इस पर शोध करने पर कई रहष्य हाथ आ सकते हैं.
हमने १९९०में गुजरात विश्वविद्यालय में अपने उर्दू हिन्दी,गुजराती ग़ज़लों पर प्रस्तुत शोध कार्य में विशेष कर छन्दों के संदर्भ में जाना था कि कई हिन्दी छंद उर्दू छंद प्राया एक से हैं. जहां उर्दू छन्दशास्त्र का मूलआधार अरबी फारसी बहरें हैं वहीं हिन्दी छन्दशास्त्र का आधार संसकृत भाषा का छंद शास्त्र ही हैं और इन छन्दों का मूल वेद हैं. इसी कारण इस त्रिदिवसीय वेद संगोष्ठी में हमने अपना पंजीकरण कराकर भाग लिया ताकि उन रहष्यों को जान सके जिनसे हम अब तक अनविज्ञ हैं.

हमने जाना कि त्रग्वेद,यजुर्वेद,सामवेद,अर्थवेद में सामवेद छन्दवद्धगान ही हैं. छन्द ही कविता के वेगमयी प्रवाह को धारण कर उन्हें कर्ण प्रिय बना चिरंजीवी बनाते हैं. वैसे कविता कान की कला है संगीतात्मकता मनुष्य ही नहीं पशुपक्षियों के आकर्षण का केन्द्र रही है नाद के आकर्षण पर ही मृग लुब्ध होकर निषाद के बाणों की परवाह नहीं करता.

जिस वेद सम्मेलन संगोष्ठी में हम उपस्थित थे उसके द्वितीय सत्र वेद रक्षा के उपाय में विविध विद्वानों के सामवेद मंत्रों के गायन-पाठन ने हमारा मन मोह लिया. हौ-हौ- हौ- विविध नादों के आरोह अवरोह ने हमारे चंचल चित्त को ऐसा जकड़ के रखा कि वह गोष्ठी कक्ष से एक बार भी बाहर नही गया. इतना ही नहीं यत्र-तत्र अड़ोस पड़ोस में भी उसने कुलाछें नहीं मारी.
प्राया संगोष्ठियों में विद्वानों के नीरस पाठ से लोग बीच में ही भाग खडे होते हैं लगे हाथ दैनिक आवश्यक क्रियाओं को भी अंजा़म दे देते हैं चाय-चू का तो चालु रहना आम बात है.सभागार में वेद मंत्रों के गान और उनकी शक्ति ने सब को ऐसा ज़कड़ रखा था कि सब मंत्र मोहित हो बैठे हुए थे.
मंत्रो के आह्वान से कोई देवता तो प्रकट नही हुआ पर राज्य के प्रतिनिध के रूप में युवाखेलकूद एवं सांस्कृतिक विभाग के सचिव श्री भाग्येश झा जी अवश्य प्रगट हुए. उन्होंने संस्कृत में बड़े संक्षिप्त में प्रवचन कर प्रासंगिकता को बनाये रखा साथ ही संसकृत में छन्दबद्ध कंप्यूटर रचना को भी सुनाया. नवम्बर मास के अंतिम सप्ताह में होने वाले खेल महाकुभं का दायित्व उनके कंधे पर होने से वे ज्यादा नहीं ठहरे. झा साहब खेल महाकुंभ का तो आयोजन कर रहे हैं क्या उन्हें पता है कि सरकारी कोलेजों में वर्षों से स्पोर्टस अध्यापक की नियुक्तियाँ नहीं की गयीं. इनके बिना महाखेल कुंभ का होना वेद मंत्रों की शक्ति से बड़ी राजशक्ति से ही संभव है और न भी हो तो मीडिया की शक्ति से दिखाया ही जा सकता है. धन्य हैं सभी स्वर्ण जयन्ती के शिल्पी

चूंकि भारत वर्ष के विविध प्रान्तों से आये सभी विद्वानों को अपने शोध प्रपत्रों का पढ़ने का पर्याप्त अवकाश मिले इस हेतु से आयोजको नें विश्वविद्यालयों के कई स्थलों पर संगोष्ठियों का आयोजन किया था.
मेरा मूल आकर्षण वैदिक मंत्रो के गान को सुनने में था खास कर हिन्दी अध्ययन अध्यापन शिक्षा कार्यमें ऐसा पढ़ सुन रखा था कि विविध मंत्रों के आह्वान से देवता प्रगट होते हैं और वे वर्दान दे जाते हैं जैसा कि महाभारत काल में कुंती ने कुमारा अवस्था में मंत्रों की परीक्षा हेतु सूर्य का आह्वान किया जिससे कुमारा अवस्था में कर्ण की प्राप्त की.ये अलग बात है कि सूर्य देव और कुंती को विशे्ष फर्क नहीं पड़ा पर कर्ण को जीवन पर्यन्त सहना पड़ा. कुमारा अवस्था के पूर्व प्रयोग के बाद विवाहिता कुंती ने परस्थितियों वश फिर से मंत्रों द्वारा धर्मराज से युधिष्ठिर, इंद्र से अर्जुन वायु से भीम की प्राप्ति की थी. इससे सीख ये मिलती है कि मंत्रों का जिज्ञासा वश प्रयोग करना कुमारिकाओं के लिए ठीक नहीं.

ये सर्व विदित है कि महाभारत से कई हजार वर्ष पूर्व वेद असतित्व में आ चुके थे पर उनका चार शाखाओं में विभाजन नहीं हुआ था. वेद श्रुति परंपरा से हमें ऋषि मुनियों द्वारा हजारों वर्ष पहले उपलब्ध हुए थे. माना जाता है इन वेदों का रचैयिता वो परम तत्व ही है जिसने मानव का निर्माण किया. इन वैदिक मंत्रों का श्रवण ऋषि मुनियों ने किया था फिर एक के बाद दूसरी परिपाटी को प्राप्त हुए. कालांतर में भोज पत्र ताड़ पत्र कागज़ पर उनका आलेखन किया गया. अब तो वेब पेजों पर भी वेदों की महिमा का गान भले ही अल्प प्रमाण में हो पर है अवश्य. गुग्गल पर वेद मात्र लिखने से विपुल मात्रा में सामग्री के साथ साथ छवियाँ उपलब्ध हैं जो जिज्ञासुओं को पूर्ण रूप से संतुष्टि भले न प्रदान करें पर उनमें कौतूहल अवश्य जगाती हैं.

इसके जिम्मेवार विविध विश्वविद्यालयों में विभागों में बैठे संस्कृत हिन्दी भाषा के आचार्य जो अपने आप को प्रोफेसर कहलावाते हैं,कोलेजों में कार्यरत वे सीनियर अध्यापक एवं अध्यापिकायें जो डॉक्टर डॉक्टर डॉक्टरनी कहलाते हैं. आजकल छठे वेतन आयोग में ये सभी प्रतिमास ९० से ८० हजार ऐंठ रहे हैं पर वे सभी वेदों को भोजपत्र, ताड़पत्र एवं कागपत्र से आगे बढ़ने ही नहीं दे रहे.उन्हें पता भी नहीं इसके आगे वेब पत्र भी है.

जो वेदों की रक्षा करने उन्हें विश्वमें जन जन तक पहुँचाने में समर्थ है. ब्लाग द्वारा अपने लेखो यू ट्यूब द्वारा वेद मंत्रों के पाठों को वेब पर रख कर प्राचीन भारतीय संस्कृत की अक्षुण धरोहर को नई दिग्भ्रमित पीढ़ी जो आर्कुट फेस बुक ट्वीटर पर पाश्चात्य संस्कृति के आक्रमण को झेल रही है. उसे रास्ता दिखाया जा सकता है.
अच्छे बुरे का फैसला वक्त करेगा पर विश्वविद्यालयों के ज्ञानी,विदुषियाँ ये पहल तो करें.

विश्वविद्यालयों में आचार्य कृपा से हुए डॉक्टर डॉक्टरनियों का मेला लगता है वे सीनियर सिलेक्शन ग्रेड की रक्षा हेतु वेद रक्षा के कार्यक्रम सपत्नी बाल बच्चों सहित आ जाते हैं ऐसा ही कुछ नज़ारा हमने गोष्ठी में देखा कुछ छोटे बच्चे इधर उधर भाग रहे थे तो हमें डॉक्टर डाक्टरनी की लीला का बोध हुआ. वेद चिंतन मनन अकेले थोड़ी हो सकता बालगोपाल भार्या का होना आवश्यक है वेद चिंतन के बाद गुजरात दर्शन हेतु अपना पत्र पढ़ कर कुछ भाग लिए तो गुजरात वाले क्यों पीछे रहते. प्रमाण पत्र एवं किट प्राप्ति उनके जीवन का परम लक्ष था. समापन सत्र में उतनी संख्या नहीं थी जितनी उद्घघाटन सत्र में देखी गयी थी.

संगोष्ठी में आये कुछ विद्वानों को हमने सायं भोज समारंभ में रोते देखा ,गुजरात में कढ़ी है कि की खीर कुछ पता नहीं चलता.शाक दाल सबमें गुण डाल रखा है कैसे खायें. हमने कहा हमारे गुजरात में सब कुछ मृदु होता है आप प्रभु का प्रसाद समझ कर ग्रहण करें. कड़ी को आप बोतल में भर ले जायें रास्ते भर शर्बत समझ कर पीते जाना. उन्होंने पूछा कि आप कहां से हैं हमने कहा हमारे पूर्वज तो उत्तर भारत के थे पर हम यहां के ही हैं वे बोले तब तो आप पचास प्रतिशत ही यहाँ के हुए महाराज आप आयोजकों को बता मत देना कि हम भोजन को लेकर विलाप कर रहे थे हमारा सर्टीफिकेट रुक गया तो सिलेक्शन ग्रेड की रक्षा कैसे होगी वेद रक्षा से बड़ी सिलेक्शन ग्रेड की रक्षा है.ये सब सुनकर हम धन्य हो गये.असली चर्चा संगोष्ठी कक्ष से बाहर हुआ करती है.

हम बढ़े हर्ष के साथ कह सकते है कि हमारे राज्य के मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्रमोदीजी की अँग्रेजी के साथ साथ संस्कृत हिन्दी, गुजराती में वेब साइट http://www.narendramodi.in/ है.

जिस पर निरंतर वे राज्य की क्रिया कलाप गतिविधियों का मनन एवं विश्वलेषण करते हैं. अगर राज्य से संस्कृत लुप्त हो रही है, राष्ट्रभाषा हिन्दी गायब है ,गुजराती हासिये पर धकेल दी गयी है तो राज्य के कितने अध्यापक-अध्यापिकाओं ने उनका इस ओर ध्यान आकर्षित किया.
हमारे सिवा किसी ने नहीं.उनके ताजा हिन्दी लेख आओ गुजरात को तेजस्वी बनायें पर हमारी टिप्पणी अभी भी प्रकाशित है मो़डरिट नही की गयी. पर दूसरे सो रहे हैं इसमें प्रशासन से ज्यादा स्वार्थी विद्वजन हैं जो आँखें बंद किये आत्मरत हैं.
समापन संगोष्ठी के अंतिम सत्र में एक पंडितजी ने सभी की खिचाई करते हुए कहा कि आप सब लोग पीएच.डी.एवं आजीविका प्राप्ति के बाद पढ़ना लिखना बंद न कर दें. उसे निरंतर गतिमान रखें. नई पीढ़ी का मार्ग प्रशस्त करें.

समापन सत्र की संगोष्ठी के अध्यक्ष पूज्य ज्ञानेश्वरजी (आचार्य दर्शनयोग महाविद्यालय आर्यवन रोजड जि.साबरकांठा गुजरात) ने अपने अंतिम अध्यक्षीय प्रवचन में रोष प्रकट करते हुए कहा कि वेदों की सम्यक जानकारी और उनका अभ्यास विश्वविद्यालयों में उचित ढंग से नहीं हो रहा. वेदों को भाष करने वाले पाश्चाचात्य विद्वानों के साथ साथ तथाकथित भारतीय विद्वानों नें भी वेदों में वैदिक हिंसा दुष्प्रचार को बल दे कर आम लोगों से विमुख कर दिया. महर्षि दयानंद सरस्वती ने वेदों के महात्म्य को समझते हुए भारतीयों ही नहीं तमाम मानव जाति को वेदों की तरफ लौटने को कहा था. पर वैसा नहीं हुआ. परिणाम हम देख सकते हैं विश्व में हिंसाचार, भृष्टाचार,तनाव पर्यावरण में गतिरोध अनायास नही हुआ. इसका मुख्य कारण हमवेदाविमुख हैं. हमने उन्हें जाने बिना ही त्याग कर रखा है.

आचार्य ज्ञानेश्वरजी ने कहा कि राम-कृष्ण गाँधी हमारे महापुरुष तो हो सकते हैं पर भगवान नहीं. वेदों का रचैयिता निराकार है जो समग्र मानवजाति की परवाह करता है.वो किसी एक जाति या धर्म का नहीं हो सकता. उस परमपिता की आराधना मंदिर मस्जि़द गिरजा के सिवा किसी भी जगह शुद्ध मन से की जा सकती है.

वेदों में हिन्दू धर्म की नहीं मानवधर्म की बात है. वेदों में विज्ञान खगोल ज्योतिष,पर्यावरण चिकित्सा योग पर्यावरण रक्षा आदि के उपाय निहित हैं. जो संपूर्ण मानवजाति के लिए हैं किसी एक धर्म के लिए नहीं हैं.अंत में आचार्य ज्ञानेश्वरजी ने अपना दुख व्यक्त करते हुए बताया कि उन्होंने स्वयं मुख्यमंत्री नरेन्द्रमोदीजी से गुजरात के स्कूलों कोलेजों में विश्वविद्यालयों में वेदों के सम्यक अभ्यास के लिए निवेदन किया था पर उन्होनें ये कह कर ख़ारिज़ कर दिया कि आज तुम वेद का कह रहे हो कल कोई किसी और का कहेगा ये संभव नहीं है.
आचार्य ज्ञानेश्वरजी निरंतर गुजराती दैनिक में अपने गंभीर लेख लिखा करते हैं साथ ही किसी को भी खरीखरी कहनें में ज़रा भी ही हिचकिचाते नहीं हैं. उन्होंने कहा सच्चा वेदाभ्यासी कभी झूट नहीं बोल सकता भृष्टाचार नहीं कर सकता,राग द्वेष नहीं फैला सकता.वेदज्ञान के अध्ययन के साथ उन्हें आचरण में सम्मिलित करना ही हमारे ऋषि-मुनियों को सही श्रद्धांजली होगी. अंत में हम गुजरात विश्वविद्यालय के कुलपतिश्री डॉ.परिमल त्रिवेदी का.कुलसचिवश्री मीनेश शाह,भाषा भवन के निदेशक एवं संस्कृतभाषा के जानेमाने व्याकरणाचार्य प्रो.डॉ.वसन्त भट्टभाषा भवन के संस्कृत विभाग के वरिष्ट प्राध्यापक एवं समग्र कार्यक्रम के कुशल संचालक प्रा.चौकसी साहब ,गुजरात प्रांतीय आर्य प्रतिनिधि सभा के प्रधान सुरेश चंद्र अग्रवाल के आभारी हैं जिनके संयुक्त प्रयास से अहमदाबाद में त्रिदिवसीय राष्‍ट्रीय वेद सम्मेलन का सार्थक प्रयास किया गया. विविध राज्यों से पधारे विद्वानों ने जब समापन समारोह में तमाम व्यवस्था आवागमन,निवास, भोजन की मुक्त कंठ से प्रशंसा की तो हमें बहुत अच्छा लगा. उपरोक्त त्रिदिवसीय वेद सम्मेलन की रिपोर्ट एवं ब्लाग पर लगे कार्यक्रम के स्लाइडशो को देखकर एक भी वेदप्रेमी अपनी प्रतिक्रया को टिप्पणी के रूम में दर्ज करेगा तो हम अपना श्रम सार्थक समझेंगे.सादर



डॉ.सुभाष भदौरिया
प्रिंसीपल सरकारी आर्टस कोलेज शहेरा

जिला पंचमहाल गुजरात मोबा. 97249 49570


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