शनिवार, 27 नवंबर 2010

आँखें खोलो गुजरात, आँखें खोलो गुजरात.



ग़ज़ल
 
 
सच को देखो गुजरात,चमचे करते हैं घात, 

आँखें खोलो गुजरात, आँखें खोलो गुजरात.
 

बिना मौसम बरसात, है ये दिन में क्यों रात,

 आँखें खोलो गुजरात, आँखें खोलो गुजरात.
 

न तो वाँचे (पढ़े) गुजरात, न तो खेले गुजरात,

 कैसे जीते गुजरात, है ये अंदर की बात,


खेल करती दिन रात, झूटी सारी बारात,

 आँखें खोलो गुजरात, आँखें खोलो गुजरात.


रोये रमण की मात, रोये असलम का बाप,

 कोई सुनता न बात, बच्चे करते विलाप,
 

माल खाये गुजरात, चूहे करते उत्पात, 

आँखें खोलो गुजरात, आँखें खोलो गुजरात.
 

पूछे बापू दिन रात,  हिन्दी गायब क्यों भ्रात
 दिल पे गहरा व्याघात,अब भी सोचो गुजरात, 
 

कुछ तो बोलो गुजरात, आँखें खोलो गुजरात, आँखें खोलो

गुजरात.
 

खूब पीये गुजरात, खूब सोये गुजरात, ऐसे हैं 

अब हालात, लोग करते अपघात,
 

चोट करने को अब भी है दुश्मन तैनात, 

आँखें खोलो गुजरात, आँखें खोलो गुजरात.


हमने घिस दी है जात,  रोज सहते आघात,

सहमें-सहमें जज़्बात,फिर भी ज़िन्दा हैं तात,


रक्श करती दिनरात, है ये होटों पे बात, 

आँखें खोलो गुजरात, आँखें खोलो गुजरात.



ये ग़ज़ल गुजरात के मुख्यमंत्रीश्री नरेन्द्रमोदीजी के नाम जो नित नये सांसकृतिक आंदोलन

वांचे गुजरात, खेले गुजरात-जीते गुजरात चला रहे हैं जब कि गुजरात  उच्च शिक्षा विभाग

की घोर उदासीनता के कारण पिछले कई वर्षों से सरकारी कोलेजों में न तो लायब्रेरियन

की भर्ती हुई है और न तो स्पोर्टस अध्यापक की. हमारी सरकारी आर्टस कोलेज शहेरा में

जहां हम प्रिंसीपल के रूप में कार्यरत हैं वहां तीन साल से महेकम होने के बाद और

हमारी लगातार उच्चशिक्षा विभाग को लेखित मांग के बाद भी कुछ नहीं हुआ. कोलेज

स्कूल की बिल्डिंग मे तीन साल से घिसिट रही है जमीन अभी तक नहीं मिली, गाँधीनगर

महसूल मंत्री के आदेश होने के बाद जिलाधीश महोदय का आदेश मिलना बाकी है उनसे

रूबरू मिलकर गुज़ारिश की श्रीमान कोलेज निर्माण ग्रांट जो नवकरोड़ वित्त विभाग ने दी है वह जमीन ज़ल्द न मिलने से मार्च 2011 में लेप्स हो जायेगी कृपा करो सर. उन्होंने कहा

है  हो जायेगा आर्डर.

वर्ग चार के स्वीपर रमण भाई की 6 महीने से तनखाह बाकी है जिला कलेक्टर महोदय ने

आउटसोर्सिंग कंपनी का टेन्डर अभी तक पास नहीं किया. ट्रेजरी बिना उनके  आदेश बिल

कैसे पास करे.

कोलेज में 15 की जगह 8 का ही स्टाफ मिला था एक करार आधारित अध्यापक अन्य

प्राइवेट कोलेज में चला गया.  

हमारी नई कोलेज होने के कारण और बिल्डिंग न होने की वजह से एन.सी.सी. अधिकारी

गोधरा ने एन.सी.सी युनिट कोलेज को नहीं दी. गुजरात राज्य के एन.सी.सी.निर्देशक

महोदय से मिले तो उन्होंने एन.सी.सी. युनिट वाली कोलेज में ट्रांसफर मांग लेने को कहा

तो हमने राज्य उच्चशिक्षा नायब सचिव को लिखित आवेदन दे कर कहा सर किसी भी

एन.सी.सी. युनिट वाली कोलेज में रख दो देखें क्या होता हैं.

क्लास वन होने के कारण प्रिंसीपली की फाइल सचिव, शिक्षामंत्री, और अंत में मुख्यमंत्री

तक जाती है तब कही मोक्ष होता है. गुजरात सीमावर्ती प्रदेश होने के कारण यहाँ शास्त्र

विद्या का ख़ासा महत्व है पर उच्चशिक्षा विभाग के अधिकारी,मंत्री समझें जब न पर

मुख्यमंत्री दूरदृष्टा हैं साथ उन्हें हमारे भूकंप आदि आपदाओंमें एन.सी.सी. का योगदान याद

होगा ही इसी उम्मीद के साथ

प्रिंसीपल डॉ.एस.बी भदौरिया,

एक्स एन.सी,सी.आफीसर(केप्टन) NCC-43150

ता.27-11-2010

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1 टिप्पणी:

  1. रोये रमण की मात, रोये असलम का बाप,
    कोई सुनता न बात, बच्चे करते विलाप
    yah hui na shai bat bahut achha likha ,badhai

    जवाब देंहटाएं