रविवार, 6 फ़रवरी 2011

देख भौंके हैं उनको दो कुत्ते.


 






     



ग़ज़ल

चुपके चुपके वो गुल खिलायेंगे.
चील बगुले मज़े उड़ायेंगे.

देख भौकें हैं, उनको दो कुत्ते,
अपना कुछ तो धरम निभायेंगे.

हम जो बिगड़े तो देखना लोगो,
वाट फिर सब की हम लगायेंगे.

काग़ज़ी ही नहीं रखते हैं हुनर,
वक्त आने पे हम दिखायेंगे.

बन के बारूद फट न जायें कहीं,
कब तलक खुद को हम दबायेंगे.

वो जो उड़ते हैं आस्माँ में अभी,
ज़ल्द उनको ज़मी पे लायेंगे.

खूँन दे दे के जिगर का अपना,
आँधियों में दिये जलायेंगे.

एक तरफ गुजरात का हमारा उच्चशिक्षा विभाग कुंभकरण निद्रा में तो दूसरी तरफ हम दो हैं कि उन्हें जगाने की भरसक कोशिश कर रहे हैं जाने उनकी कब नींद खुलेगी.
दूसरी तरफ राज्य के मुख्यमंत्रीश्री नरेन्द्र मोदीजीने गांधीनगर महात्मा मंदिर बना कर उसमें गुजरात के विकास की जो झाकियां करायी उनका तारीख 18-01-2011 के रोज़ अपनी सरकारी आर्टस कोलेज शहेरा के छात्र छात्राओं एवं स्टाफ के साथ हमने साक्षात दर्शन कर अनुपम आंनद की उपलब्धि की. गुजरात के भौतिक विकास की विविध झांकियों में नैनो लखटकिया कार का निर्माण, गुजरात का मश्हूर सिंह अभ्यारण सासणगीर. धार्मिक तीर्थ स्थल द्वारिका एवं सोमनाथ के रमणीय स्थलों को देखने के लिए लाखों की संख्या में गाँधीनगर सेक्टर 13 में लोग आये. उन तमाम झाकियों का स्लाइडशो हमने अपने ब्लाग पर लगाया है ताकि न देख सकने वाले उसको देख सकें.


वहां मेरा सबसे आकर्षण का केन्द्र महात्मा मंदिर था.
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जब मेरे सपने में शहेरा आये थे देखें इस लिंक पोस्ट पर http://subhashbhadauria.blogspot.com/2010/10/blog-post_27.html  गाँधीजीने मेरे सपनेमें ग़ज़ल कही


तो उनके मुख्य मंत्रीश्री मोदीजी द्वारा निर्मित मंदिर को देखना मेरा भी फर्ज़ था.


पर बापू वहां मिले नहीं वे तो रूठ कर गुजरात छोड़ बिहार नितिशजी के पास चले गये हैं. मुझे उन्होनें सपने में बताया था कि मुख्यमंत्रीमोदीजी गुजरात में हो रही राष्ट्रभाषा हिन्दी की उपेक्षा को दूर करें अपने विधान सभा विस्तार की सरकारी आर्टस श्री के.का. शास्त्री कोलेज में हिन्दी विषय शुरु करेगें तब आऊँगा. बापू का गुजरात से इस बात के लिए जाना हमें बहुत अखर रहा है.


डॉ.सुभाष भदौरिया ता.06-02-2011
प्रिंसीपल सरकारी आर्टस कोलेज शहेरा
एवं इंचार्ज प्रिंसीपल सरकारी सायंस कोलेज झालोद(राजस्थान के पास) मोबा.97249 49570





































2 टिप्‍पणियां:

  1. बन के बारूद फट न जायें कहीं,
    कब तलक खुद को हम दबायेंगे.
    सच कहा आपने बर्दास्त की भी कोई सीमा होती है...इश्वर से हमेशा पार्थना करते हैं के आपको जल्द ही आप के परिवार से मिलवाये लेकिन...शायद "ऊपर वाला जान कर अनजान है..."

    नीरज

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  2. नीरजजी ऊपर जो फोटो हमने लगाई है वो हमारी है हम फ्रंट पे भौंक भौंक कर परेशान पीछे ब्लेक ड्रेस में एक हमारा साथी है हमारे पीछ रहकर हमें भौकने को मोटीवेट करता है भाई हम गुजरात स्टेट के क्लासवन गेज़ेटेड डोग है गुजरात उच्चशिक्षा जगत में चुपचाप मछली निगलने वाले बगुले उच्च पदों पर आसीन हैं चीलें भी मज़ं कर रही है मरना हमारा है.
    यार ये बताओ हमारी तस्वीर कैसी लगी भौंकती हुई आपको ?

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