गुरुवार, 5 मई 2011

वो सुनामी की तरह आये है.

ग़ज़ल

वो सुनामी की तरह आये है.
दिल की कश्ती ये डगमगाये है.



मर्हमे-दिल जिसे समझते थे,
वो ही दिल पे छुरी चलाये है.



पहले देता है दावतें दिल को,
वक्त आने पे मुकर जाये है,.



मैं उजालों में उसको मांगे हूँ,
वो अँधेरों में मुझको चाहे है.



मेरी वीरानियों को न समझे,
मेरी हालत पे मुस्काराये है.



हम तरसते हैं बूँद की ख़ातिर,
वो समन्दर पे बरस जाये है.



डॉ.सुभाष भदौरिया.ता.05/05/2011













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