गज़ल
तुम तो रहो पोशीदा, हर वक्त हिज़ाबों में.
हम तुमको तलाशे हैं,सिगरिट में शराबों में.
ख़ुश्बू के तमन्नाई, ये वक्त पे समझेंगे,
काँटे हैं बहुत काँटे,मदमस्त गुलाबों में.
हालात ने चेहरे की, छीनी है अदा अपनी,
अब हम भी लगे रहने,छिपकर के नक़ाबों में,
अल्फ़ाज़ मेरे तुम तक, पहुँचे जो तो सुध लेना,
पत्तों से बिखरते हैं, ग़ज़लों में किताबों में.
पूछे हैं सबब मेरा, सब लोग उदासी का,
इक बार चले आओ, भूले से ही ख़्वाबों में.
डॉ. सुभाष भदौरिया ता. 19/05/2011
बहुत खूब! बेहतरीन गज़ल..
जवाब देंहटाएं