शुक्रवार, 17 जून 2011

जाने किस जुर्म की वो हमको सज़ा देता है ?




ग़ज़ल
जाने किस जुर्म की हम को वो सज़ा देता है.
जब भी मिलता है मेरे दिल को दुखा देता है.

जान अब आ गयी होटों पे उसे क्या मालूम,
और वो है कि रक़ीबों को दवा देता है.

हसरतें और न बढ़ जायें उसे पाने की,
रह के ख़ामोंश वो शोलों का हवा देता है.

हमको पीकर के वो देखे तो इल्म हो उसको,
जितना दारू हो पुराना वो मज़ा देता है.

रात आता है दबे पांव मेरे ख़्वाबों में,
उसका अहसास मेरी नींद उड़ा देता है.

ऐक तो तूफाँ में कश्ती है बहुत पहले से,
बीच मझधार में ज़ालिम वो दग़ा देता है.

मैं बहुत दूर निकल आया तेरी बस्ती से,
देखें अब कौन हमें फिर से सदा देता हैं.

उपरोक्त कोलेज कार्यालय की अपनी पहली तस्वीर की मायूसी को देखते देखते ये ग़ज़ल हो गयी.
और ये नीचे तीन साल पहले जब हम अहमदाबाद कोलेज में थे तब की हमारी एन.सी.सी. युनिफोर्म में तस्वीर
कोई मानेगा अपना भी इक जमाना था.


  गुजरात उच्च शिक्षा विभाग के हुक्मरानों ने हमें परिवार से दूर प्रिंसीपाल के प्रमोशन के नाम पर ऐसी जगह पटका है जहां सिर्फ तन्हाईयों के सिवा कुछ भी नहीं हैं. स्टाफ में अध्यापक हर साल जुलाई से अप्रैल फिक्स तनखाह फिक्स मुद्दत के लिए आते हैं.
अध्यापिकाओं का ट्रांसफर 10 साल से अहमदाबाद गाँधीनगर से नहीं किया गया उनका ध्यान रखा जाता है. बिचारे अध्यापक रगेड़े जाते है. हमारे यहां 16 में से एक ही अध्यापक रेग्युलर है.


गुजरात राज्य सेवा आयोग से रेग्यलुर भर्ती की जगह राज्य सरकार का उच्च शिक्षा विभाग तीन साल से 16500 रुपये प्रतिमास फिक्सम फिक्सम की कार्यवाही हर साल करता है. इस बार 20-6-2011 से 1जुलाई 2011 तक कार्यवाही होगी तब कहीँ जा के सरकारी कोलेजो में  अध्यापक आयेंगे. तब तक यो ही अकेले एडमीशन करो और सब छात्रों को तसल्ली दो तुम्हारे गुरु गुरुआइन आने वाले हैं. अभी तुम हैड गुरू का खूँ पियो. वे पूछते हैं सर हमें  पढ़ाने वाले अध्याक कब आयेंगे एडमीशन तो ले लिया हम सुब्ह से शाम तक सब को यही कहते हैं धीरज रखो वत्स वे जुलाई तक आ ही जायेंगे अभी उनका इंटर्व्यु शुरु नहीं हुआ.
 में वैसे ही कोलेजों में झंडे से झंडा अध्ययन होता है. हमारी सरकारी कोलेजों का तो हाल बेहाल है.

दूसरा हमारा दुख हमारी गुजरात उच्च शिक्षा विभाग से मांग की ट्रेन्ड एन.सी.सी.ओफीसर होने के कारण एवं सुपरन्युमरी लिस्ट पर नाम ता. 21/6-2011 तक होने के कारण एन.सी.सी. युनिट वाली किसी भी सरकारी कोलेज में पोस्टिंग दो  जैसे हमारे साथ प्रमोशन पाने वाली अध्यापिका को शुरू से अहमदाबाद एन.सी.सी. वाली कोलेज में रखा गया. हमारे साथ इंतनी बेइंसाफी क्यों बताओ
हमारी मांग को अभी तक ग्राह्य नहीं रखा गया. पिछले 6 महीनों से शिक्षा सचिव श्री अडिया साहब (I.A.S.) अभी तक निर्णय नहीं ले पाये.
नये सचिवालय के सेक्सन आफीसर ने बताया कि उच्चशिक्षा  कमिश्नर कचेहरी से के जोइन डायरेक्टर फिटर साहब कितनी सरकारी कोलेज में रेग्युलर प्रिंसीपल और एन.सी.सी की जगह खाली है उसकी जानकारी  हमारे कई बार मांगने के बाद अभी तक नहीं दे रहे हैं. 
गाँधीनगर की सरकारी कोलेज के पूर्व प्रिंसीपल का निधन दो साल से हो चुका है दो साल से रेग्युलर प्रिंसीपल और ट्रेन्ड एन.सी.सी. ओफीसर की जगह खाली है वहां एक अध्यापिका को चार्ज दे रखा है सब उसकी रक्षा में जी जान से लगे हैं हमारी शिक्षा कमिश्नर श्रीमती जयन्ती रवीजी को हमें दुख देने में बहुत आनंद आता है वे चाहे तो जोइन डायरेक्टर से कह सकती हैं पर उन्हें इतनी फुर्सत कहां ?


 मुख्यमंत्रीश्री नरेन्द्रमोदीजी को पचासों मेल किये पर कोई सुनवाई नहीं. हमने ब्लाग पर जो स्लाइडशो लगाया है उसमें उनसे हस्तधुन करती तस्वीर हैं 5000 मशाले ंसराकार के आदेश से हमने अपने एन.सी.सी केडे़टस के साथ बनाई थी.
राज पुरषों की स्मृति यो ही कमज़ोर होती है वे भी भूल गये.


ता.21-6/2011 को हमारा एन.सी.सी. का कमीशन ख़त्म हो जायेगा फिर एन.सी.सी का केप्टन रेक सब ख़त्म फिर हम कभी उपरोक्त तस्वीर की तरह युनिफोर्म नहीं नहीं लगा सकेंगें.
हमारे इस एन.सी.सी. पद के एनकाउन्टर की साज़िश में कई नामी गिरामी शामिल हैं ता.21-6-2011 के बाद सबके नाम तफ़्सील से लिखकर हमारी शहीद एन.सी.सी. आत्मा रोज़ उनकी आरती उतारेगी तब तक वो इंतज़ार करें.


हमने अपना पुराना एन.सी.सी  स्लाइडशो लगाया है हमारे चाहने वाले उसे देखें कि कि हम क्या से क्या हो गये प्रिंसीपल के प्रमोशन के नाम पर हमें उनसे दूर एक गाँव में तीन साल से पटका गया. सब कुछ छूट गया हमारी इकलौती पत्नी, इकलौती बेटी,इकलौता बेटा. 
हाय अब ग़ज़ल के नाम पर सिर्फ रोना बचा है तो दूसरी तरफ साज़िश करने वाली गेंग मज़े लूट रही है. जय जय स्वर्णिम गुजरात.जय जय स्वर्णिम गुजरात.

डॉ.सुभाष भदौरिया ता.17-6-2011

9 टिप्‍पणियां:

  1. ऐक तो तूफाँ में कश्ती है बहुत पहले से,
    बीच मझधार में ज़ालिम वो दग़ा देता है.
    मैं बहुत दूर निकल आया तेरी बस्ती से,
    देखें अब कौन हमें फिर से सदा देता हैं.


    आन्तरिक भावों के सहज प्रवाहमय सुन्दर ग़ज़ल...
    बहरहाल, धैर्य रखिए..आप फिर अपनों बीच लौटेंगे...

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  2. khoobsoorat gazal....ek shayar to apni har paristhiti ko bhuna leta hai ...yani har baat dhal jati hai shayri me...

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  3. khoobsoorat gazal....ek shayar to apni har paristhiti ko bhuna leta hai ...yani har baat dhal jati hai shayri me...

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  4. ख्यालों और जीवन का सुन्दर समन्वय्।

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  5. प्रवाहमय सुन्दर ग़ज़ल|

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  6. डॉ.मिस शरदसिहंजी आपकी मिस की डिग्री डॉक्टर की डिग्री से बड़ी है इसका पता तो मुझे तब चला जब आपके ब्लाग पर एक अछान्दस रचना पर 170 से ज़्यादा टिप्पणियां देखीं तो काफी जलन हुई और एक हम है कि हमारी ग़ज़ल पर हमारी तन्हाइयों के सिवा इक्का दुक्का पाठक ही कोई ख़बर लेता हैं.

    मीर तकी मीर साहब का शेर याद आ गया-

    हम हुए तुम हुए कि मीर हुए,
    उसकी ज़ुल्फों के सब असीर हुए.
    बुरा मत मानना खैर खबर लेती रहना.

    असीर-prisoner-कैदी.

    बहरहाल अपनों के बीच लौटने से ज़्यादा एन.सी.सी खोने का है.
    रही धीरज की बात सो ज्यादा दिनों तक रखना मुश्किल हैं.

    2-शारदाजी आपका ब्लाग देखा आपकी रचनायें ग़ज़ल के शिल्प से कोसों दूर हैं आप ग़ज़ल के शिल्प पर पढ़िए फिर लिखिए.ग़ज़ल कोई ख़ाला का घर नहीं है. बकौले फ़िराक गोरखपुरी-
    उम्र भर का है तजर्बा अपना,
    उम्र भर शायरी नहीं आती.

    हमारे ब्लाग पर आने वाले पाठकों के ब्लाग को आदतन देखना और उस पर बेबाक टिप्पणी करना हमारी फितरत है.आप में भावनायें है उसे कविता में निश्चित शिल्प की तलाश है.

    3- वंदनाजी आपके ब्लाग पर आना जाना रहता है आप जानती हैं बेकार में हें हें बहुत अच्छा लिखती हैं आप कह कर गुमराह नहीं करता.आपके ब्लाग को देखता ज़रूर हूँ. आप लोगों को टिप्पणियों को भ्रमजाल से निकलना है ये नेट के नकटे यो ही बरगलाया करते हैं.
    आपमें श्रंगारिक रचनाओं की गहरी पैठ है बस कविता के लिए ज़रूरी छन्द की आपको आवश्यकता है.आप हमारी बहुत गंभीर पाठक है हम आपको को हम प्रसन्न हो एक मंत्र देते हैं आप इसको सिद्ध करे और उसमें छन्द बद्ध लिखें- छंन्द कविता को चिरंजीवी बनाते हैं उनमें लय और संगीत की मधुरता प्रदान करते हैं.

    छन्द में शब्दों को

    212-212-212-212 (पंचअक्षरीय)एक पंक्ति में पांच अक्षरों के चार टुकड़्े)

    एक मश्हूर गीत की पंक्तियां इसी में देखिये.

    छोड़ दे सारी दुनियां किसी के लिए.
    ये मुनासिब नहीं आदमी के लिए.
    या

    खुश रहे तू सदा ये दुआ है मेरी.
    वे वफा ही सही दिलरुबा है मेरी.
    या
    खुश रहो हर खुशी है तुम्हारे लिए.
    छोड़ दो आँसुओं को हमारे लिए.

    वास्तव में ये उर्दी की मश्हूर बहर बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम है
    इसके ए पंक्ति में अरकान(गण) फाइलुन-फाइलुन-फाइलुन-फाइलुन.हैं

    प्राया हिन्दी गीतकार इसी का प्रयोग करते है.आप इस में हाथ आजमायें प्रास की समझ है आपको बस छन्द को जान लें तो कमाल करेंगी आप.

    पटाली दी विलेज पर गया ऊँट गाथा काफी रोटक लगी ऊँट को ऊँठ लिखा कई बार देखा तो हमारे ज्ञान में इज़ाफ़ा हो गया कि ऊँट को ऊँठ भी लिखा जाता है.
    नुक्ताचीं है ग़में दिल उसको सुनाये न बने.
    आपका हमारे ब्लाग पर स्वागत है बोधकथा दिल को छू गयी. बयान ज़ारी रहे.

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  7. kon kaheta hai ki tufa aap ki kashtiyo ko duba dete hai
    ham to khaite hai aap bahot ufa ho jo auro ki kashtiya hila dete hai


    sand by :- h.k.umaretia

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  8. रह को ख़ामोंश वो शोलों का हवा देता है.

    संभवतः यहाँ "रह को" के स्थान पर "रह के" लिखना चाहते थे आप....कृपया मात्रा देख लें...

    लेखनी आपकी बड़ी पक्की है...परन्तु लगता है कार्मिक अवसाद ने आपको बहुत अधिक फ्रस्टेटेड कर रखा है...आप तो स्वयं सुधी हैं, सो आपको क्या सलाह सुझाव दूँ...बस यह कहना चाहूंगी कि दीर्घकालिक अवसाद रचनात्मकता को तो लीलती ही है, व्यक्तिगत जीवन भी इस आग में झुलस जाता है...
    यह सोचना एकांगी है कि केवल आप ही सर्वाधिक पीड़ित हैं...जब यह सोच दिमाग पर हावी हो तो करना यह चाहिए कि अपने से निचले पायदान पर खड़े लोगों को देख लेना चाहिए...संसार में बहुत से लोग हैं जो आपसे बहुत अधिक अभाव और पीड़ा में हैं...व्यक्ति के हाथ में अपना भाग्य/घटनाक्रमों को बदलना भले न हो,पर सोच और चिंतन की धारा बदलना अवश्य होता है...और इसे बदल आदमी अपना एकमात्र जीवन अधिक सुखी और सार्थक कर सकता है...

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  9. Aapka purana follower hoon, aap kahte rahiye hamare dil mein ujala bana rahta hai. Shukriya.

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