शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

पर लिपटकर कभी रोशनी ना मिली.


ग़ज़ल

हमने चाही वो हमको ख़ुशी ना मिली.
दुश्मनी तो मिली, दोस्ती ना मिली.

दूर ले जाये हमको बहाकर कहीं,
तेज़ रफ़्तार की वो नदी ना मिली.

यूँ   अँधेरे मिले  बेतहाशा   हमें,
पर लिपटकर कभी रोशनी ना मिली.

कोई आँसू बहाये हमारे लिए ?
आँख में वो किसी के नमी ना मिली.

हादसा ये हुआ क्या कहें अब तुम्हें,
आसमां तो मिला पर ज़मी ना मिली.


 हमने चाहा जिसे हमने माँगा जिसे,
अपने हिस्से में वो ज़िन्दगी ना मिली.

डॉ. सुभाष भदौरिया ता.02-12-2011











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