रविवार, 27 मई 2012

मैं अँधेरों में बहुत खुश अपने,मैं उजालों की भीख क्यों माँगूं.



ग़ज़ल
मैं अँधेरों में बहुत खुश अपने, 
मैं उजालों की भीख क्यों माँगूं.


मैं हवाओं पे भी जी लेता हूँ,
मैं निवालों की भीख क्यों माँगूं.

मैंने माना कि बहुत तन्हा हूँ, 
 मैंने माना कि बहुत दिल है उदास,


मैं दिवालों को चूम लेता हूँ, 
 उसके गालों की भीख क्यों माँगूं.

उसकी मर्जी है दे दवा मुझको.
 उसकी मर्जी है दे ज़हर मुझको,


मेरे दिल का वो नूर रहने दे, 
 मैं मशालों की भीख क्यों माँगूं.

एक जोडूँ तो सौ जगह टूटे, 
 साथ मिलकर वो काफ़िला लूटे,


मैं बवालों से परेशान बहुत,
मैं बवालों की भीख क्यों माँगूं.

दोस्त, दुश्मन मेरे ख़यालों में,
घात करते हैं अपनी चालों में,


मैं ख़यालों से मालामाल बहुत,
मैं ख़यालों की भीख क्यों माँगूं.

फूल देता है ग़ैर को वो तो,
मुझको काँटों का ताज़ पहिनाये,


मेरी किस्मत में चील कौए हैं,
मैं ग़ज़ालों की भीख क्यों माँगूं.

(ग़ज़ालों-हिरनों)
नई  खुली सरकारी कोलेज जाफराबाद (समन्दर से सटी  हमारी जानूं और हम) का आकर्षण हमें खींचकर  ले गया.



हम  कमिश्नर  कचेहरी  गाँधीनगर  क्या गये.  दुश्मनों का बुरा हाल हो गया  कई तो  कोमां में आ गये. कइयों का हार्टफेल हमारी वज़ह से  होने ही वाला था कई हमारा हार्ट फेल करने  की साज़िश करने लगे.
हमारा हार्टफेल होना तो बच  गया. 

पर हमारी नई  5 वर्ष लोन पर ली गयी आई-10 कार अस्पताल में जा पहुँची.15 दिन का बिस्तर है.ग़लती किस की सज़ा किसे मिली. दूसरे हमारे दुश्मनों को बड़ा अफ़सोस  है हम कैसे बच गये. 
कार को देखकर तो लगता है बैठने  वाले के पुर्जे सलामत  रहे कि नहीं पर हमारी नांक  ही फूटी थोड़ा बहुत खूँन बहा बाकी  सब  ठीक ठाक था.
गाँधीनगर कमिश्नर कचेहरी की आबोहवा भी हमारे अनकूल नहीं थी  सो जान बची तो लाखों पाये. लौट के बुद्धू घर को आयें.
हम अपने गाँव  शहेरा है यहां भी लोग चैन से कहां  जीने देते  हैं.
एक और बात कमिश्नर  कचेहरी में  क्या गये कि हमारा ब्लाग लिखना बंद हो गया था सो हमारे पढ़ने वाले  तरस  गये होंगे
उपरोक्त ग़ज़ल इसी पसमंजर की है जनाब.

डॉ. सुभाष भदौरिया प्रिंसीपल
 सरकारी आर्टस कोलेज शहेरा जिला पंचमहाल.

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