शनिवार, 19 जनवरी 2013

हर तरफ अब मगरमच्छ हैं.



ग़ज़ल

राजधानी में हम आ गये.
पिंजड़े-दानी में हम आ गये.

हर तरफ अब मगर मच्छ हैं,
गहरे पानी में हम आ गये.

रागदरबारी की धूम है,
रागदानी में हम आ गये.

मिल के चूना लगायें सभी,
चूने दानी में हम आ गये.

त्रासदी-त्रासदी- त्रासदी
किस कहानी में हम आ गये.

बेवफ़ा- बेवफ़ा- बेवफ़ा,
तेरी बानी में हम आ गये.

गुजरात उच्चशिक्षा विभाग में  पूर्णकालीन संयुक्तशिक्षा निदेशक के रूप में हमारी नियुक्ति हुई और डरते डरते ता.01-01-2013 को चार्ज संभाला. इससे पूर्व इंचार्ज के रूप में जो  गहरे अनुभव हुए थे उससे पता तो था ही कि भविष्य में हमारा पाला किस किस से पड़ने वाला है.
वायब्रन्ट गुजरात में उच्चशिक्षा विभाग की अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में हमारा जाना हुआ. बहुत दिनों के बाद मुख्यमंत्रीजी के दर्शन हुए अंग्रेजी हिन्दी में उनका व्याख्यान सुना. गुजरात के उच्चशिक्षा विभाग से विश्वप्रेरणा ले.ऐसा सभी कह रहे थे.

इसी दर्म्यान चायविराम के समय एक पुराने मित्र और अभी पाटण कोलेज के प्रिंसीपल  भास्कर मिल गये हम से बोले 8 महीने से सेलरी नहीं मिल रही पहले देवगढ बारिया कोलेज में थे उच्चशिक्षा विभाग की मंजूरी से पाटण कोलेज में नियुक्ति हुई वे बोले हमारे जैसे कई  नवनियुक्त प्रिंसीपल हैं जो लटक रहे हैं. आप साथ में पढ़े हैं अब  उच्च संयुक्तशिक्षा पद पर हैं हमारी मदद करें. नये सचिवालय में फाइल अटकी है हमारे जैसे कई प्रिंसीपल हैं  एक कोमर्स कोलेज गोधरा के नवनियुक्त प्रिंसीपल हसन साहब हैं वे भी सेलरी न मिलने के कारण 8 महीने से रोज़े रखे हुए हैं.

हमने कहा यार भास्कर  हमारा खुद सिलेक्शन ग्रेड नये सचिवालय में अटका हुआ हैं.उन्होंने एक तरफ संयुक्तशिक्षा नियामक के पद पर नियुक्ति भी की है और ग्रेड भी अटकाये हुए हैं. हमारा 2008 से  गुजरात हाईकोर्ट में केश वेटिंग लिस्टमें हैं. जब नर्कवासी हो जायेंगे तब फैसला आयेगा. एरियर्स हमें गुजरात उच्चशिक्षा नर्क में ही भेजें. जय जय गरवी गुजरात.

अभी 46  सरकारी प्राध्यापकों का 30 साल बाद फैसला आया हैं वे अठासी साल के हैं कई तो गुज़र गये कोर्ट उच्चशिक्षा कमिश्नर उच्चशिक्षा सचिव को तलब कर रही थी.कोर्ट गुस्से मे भी थी कोर्ट ने कहा फरियादी सभी 46 अध्यापक  88 साल के हो चुके कई मरने लगे.नये सचिवालय के आला अधिकारी पहले तो आये नहीं और जो आये थे कोर्ट से गायब. सरकारी वकील बाहर आ के कहे कोर्ट को जबाब दो. नये सचिवालय के सूरमा गायब पर हम कैसे भागते.
 हमें कंटेम्ट मेटर में संयुक्तशिक्षा निदेशक के रूपमें गुजरात उच्च न्यायालय में  शपथनामा दिलवाया गया हमने लिखित में गुजरात उच्च न्यायलय से कहा कि हुजूर तीन महीने में अध्यापकों का एरियर्स हम चुका देंगें.
शिक्षा विभाग ने कंटेम्ट  होने के बाद ८० लाख फाइनांस विभाग से ग्रांट मंजूर करवाली है. कोर्ट में हम सुब्ह 11 बजे से बैठे थे एजी.पी. साहब नें हमें आगे कर दिया रिसपोन्डेंट हिम सेल्फ प्रजेन्स. खैर डबल जज साहब की बेचने  हमें और हमारी एफीडेविट को गौर से देखा और विश्वास कर लिया. हमारी सूरत से वफ़ा झलकती हैं अदालत की नज़रों का सामना करने का जिगरा सब में कहा.
खैर तीन महीनें में उन सभी निवृत्त अध्यापकों को एरियर्स की रकम चुकानी हैं रात दिन उसी में लगे हैं.

 अंतर्राष्ट्रीय वायब्रन्ट संगोष्ठी में सरकारी अध्यापक मिले तो बोले हमें सीनियर सिलेकशन ग्रेड कब दोगे सर, डी.पी.सी.कमेटी कब बैठेगी.हमने कहा कि उसकी कोई ज़रूरत नहीं प्राचार्य से कहो यू.जी.सी. गाइड लाइन के मुताबिक ग्रेड छोड़ कर हमें सूचित करें.

दूसरे बोले हमें 01-01-2006सिक्स पे कमीशनका एरियर्स कब मिलेगा सर. राज्यमें सभी विभागों को मिल चुका एक मात्र अध्यापक बाकी हैं.आपसे बड़ी उम्मीदें हैं सर आपको 20 साल उच्चशिक्षा विभाग ने सताया है आप हमारा दर्द समझेंगे.

 दूसरे अध्यापक ने कहा कि  गुजरात उच्चशिक्षा विभाग अंतर्राष्ट्रीय रिसर्च  एवं उसके नये विकसित आयामों पर संगोष्ठी करता है फिर गुजरात में यू.जी.सी.द्वारा पीएच.डी.अग्रिम इंक्रीमेंट पर 2004 से रोक क्यों लगाई गयी. हम किस किस को जबाब देते. अपनी पिंजडेदानी में आ गये जहां कुछ निर्णय लेना चाहें तो भी नहीं ले सकते उच्चशिक्षा कमिश्नर और उच्चशिक्षा सचिव ही निर्णय लेते हैं पर वे कोर्ट कंटेम्ट होने के बाद ही समझते हैं.

हमने पीएच.डी. के संबंध में एक मीटिंग में पूछने पर अग्र सचिव अडियाजी को बताया था कि अन्य राज्यों में आई.ए.एस.आई.पी.एस.अफ्सरों को भी पीएच.डी.करने प्रोत्साहन हेतु अग्रिम इज़ाफे दिये जाते हैं. अध्यापकों को तो पीएच.डी,शोधकार्य ज़रूरी है. गुजरात मे पीएच.डी इंक्रीमेट पर लगी रोक हटनी चाहिए. सारे अध्यापक हाईकोर्ट में जाने की फिराक में नये आये शिक्षा मंत्रीजी ने अगर ध्यान नहीं दिया तो ऐसा होगा. कोर्ट में एफीडेविट हमें अथवा शर्मा साहब को जाना पड़ेगा पर हम दोनों पीएच.डी हैं. अपने पांव पर कुल्हाडा नहीं मारेंगे.

ज्यादा क्या लिखें 50 साल तक सच की आराधना में गुजारे हैं जंगल जंगल बोर्डर पर खाक छानी हैं, कष्ट सहें परिवार से बिछुड़ना पड़ा. अभी भी बिछुड़ने की तैयारी है अब अखीरी में बुढापा क्यों बिगाड़े. हम रोशनी के मुहाफिज़ पहले भी थे आजभी हैं हमारे चाहने वाले यकीन करें हम अभी भी ज़िंदा है और अपने पूरे तेवरों के साथ अँधेरों के खिलाफ हमारी जंग आज भी ज़ारी है. बकौले प्रा.उर्मिलेश
जो सही है वो बात बोलेंगें.
पूरी हिम्मत के साथ बोलेंगे.

साहबो हम कलम के बेटे हैं,
कैसे हम दिन को रात बोलेंगे.

डॉ. सुभाष भदौरिया संयुक्तशिक्षा निदेशक
पुराना सचिवालय गांधीनगर.
तारीख.19-01-2013



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