बुधवार, 12 जून 2013

बरसात का मौसम है, ऐसे में चले आओ.



बरसात का मौसम है ऐसे में चले आओ.
ग़ज़ल

कुछ मेरी सुनो दिल की, कुछ अपनी सुना जाओ.
बरसात का मौसम है, ऐसे में चले आओ.

चातक की तरह, हमने देखा है तेरा रस्ता,
        पहले भी बहुत तरसे अब और न तरसाओ.

फुरसत ही नहीं मिलती, मिलने की तुम्हें हमसे,
           बच्चों की तरह हमको, बातो से न बहलाओ.

एक उम्र से वाक़िफ हैं हम तेरी अदाओं से,
        दुल्हन की तरह हमसे, ऐसे तो न शरमाओ.

उखड़ा उखडा सा है, दिल देखो तुम्हारे बिन,
          आकर के तुम्हीं दिल को,थोड़ा सा तो समझाओ.

डॉ. सुभाष भदौरिया ता.12-06-2013



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