शुक्रवार, 8 नवंबर 2013

मेरी जानेमन, मेरी जानेजां, मेरी चश्मेनम मेरी दिलरुबा.


ग़ज़ल

मेरी जानेमन, मेरी जानेजां, मेरी चश्मेनम मेरी दिलरुबा.
तेरी चाह में, तेरे इश्क़ में, मेरे दिल तो हो गया बावरा.

मेरे सारे पात हैं झर गये, मैं तो ठूँठ में हूँ बदल गया,
तू समन्दरों पे बरस गयी, तेरी राह मैं रहा ताकता.

तुझे ये गुमां कि मैं बहुत खुश, तुझे ये गिला कि भुला दिया,
मेरी धड़कनों में बसी है तू तुझे, क्या ख़बर तुझे क्या पता.

अभी आँधियां है मचल रहीं, दिया झोपड़ी में जले अभी,
सभी लोग अब तो हैं कह रहे, ये अभी बुझा, ये अभी बुझा.

अभी रूप का बड़ा शोर है, अभी झूट का बड़ा ज़ोर है,
अभी इल्म तो है जलावतन, अभी सच बहुत है डरा-डरा.

मेरे हाथ भी हैं कलम हुए, मेरी काट ली है ज़बा मगर,
मेरा सर अभी है तना हुआ, वो तो कह रहा है झुका झुका.

ये जो जंगलों का सफ़र मेरा, है दरिन्दों की भी कमी नहीं,
मेरे पांव भी हैं लहूलुहां, मेरी दिल भी है ये लहूलुहां.

डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात.ता.08-11-2013





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