ग़ज़ल
और वे हैं कि समझते
ही नहीं.
दिल भी भूतों का है
डेरा अपना,
जो भी आये वो ठहरते
ही नहीं.
तेरी मरजी है बरस
चाहे जिधर,
अब तो दीवाने तरसते
ही नहीं.
तूने जिस दिन से शहर
छोड़ा है,
तेरी गलियों से
गुज़रते ही नहीं.
आयने हसरतों के टूट
गये,
भूल कर हम तो सँवरते
ही नहीं.
तुमने पहले जो
संभाला होता
आज हम ऐसे उजड़ते ही
नहीं.
डॉ. सुभाष
भदौरिया.गुजरात ता.07-04-2014
સર હમ તો આજ ભી આપકે દીવાને હૈ . ઔર ભુત હો આપ કે દુશ્મન.
जवाब देंहटाएंનમસ્કાર સર ક્યા આપકી અદા હૈ
जवाब देंहटाएंवाह सुन्दर
जवाब देंहटाएंसादर