गुरुवार, 17 जुलाई 2014

अच्छे दिनों ने अपना क्या हाल कर दिया है .



ग़ज़ल

अच्छे दिनों ने अपना क्या हाल कर दिया है.
धोती को फाड़ उसने रूमाल कर दिया है.

जीना भी बहुत मुश्किल, मरना भी बहुत मुश्किल,
कंगलों को और उसने कंगाल कर दिया है.

 आलू व प्याज को भी मुहंताज़ हो गये हम,
सेठों को और उसने खुशहाल कर दिया है.

गालों में रंगते हैं उसके गुलाब जैसीं,
गालों को पर हमारे पाताल कर दिया है.

इक जाल से जो निकले दूजे में फंस गये फिर
बाज़ीगरी ने उसके कम्माल कर दिया है.

संसद से हो सड़क तक रफ़्तार अब बुलट सी,
लाचार झोपड़ों को बेहाल कर दिया है.

डॉ.सुभाष भदौरिया गुजरात ता.17-7-2014





5 टिप्‍पणियां:

  1. यह तो मानते हैं इससे पहले अच्छे दिन नहीं थे , और उस समय अगर यही हाल थे , तो कैसा गिला कैसा शिकवा ?अच्छे दिन की आखिर परिभाषा भी क्या है?

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  2. हम तो मूर्ख हैं जी परिभाषा ज्ञानीराज देंगें.हम तो आम आदमी के बेबसी को शिद्दत से महसूस कर बयान ही कर सकते हैं. ब्लाग पर आपका स्वागत है श्रीमान.

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  3. कल 26/अगस्त/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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  4. व्क़ाह वाह हर अशार कमाल कर गया है आज की हालात को इत्ने सुन्दर तरीके से कहना वाह 1सौ मे से सौ नम्बर

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