ग़ज़ल
सरहद पे कटे सर का अंजाम नहीं आया.
छप्पन
इंच का सीना भी काम नहीं आया.
क्या
मुल्क की किस्मत में जोकर ही लिखे हैं सब ?
रूहों
को शहीदों की आराम नहीं आया.
अब
भैंस भरोसे की पानी में गयी लोगो,
कुछ
पूँछ पकड़ने का परिणाम नहीं आया.
दुश्मन
वो हमारा क्यों बातों से भला माने,
लातों
का जिसे अब तक ईनाम नहीं आया.
रावण
के शिकंजे में अफ़्सोस है सीता को,
क्यों
राम का है अब तक पैग़ाम नहीं आया.
महफिल
में कमी अपनी इस तरह खटकती है,
ग़ज़लों
का अभी मेरे क्यों जाम नहीं आया.
कुछ
देर से पहुँचा मैं धीरे से कहा उसने,
शायर
वो मेरा अब तक बदनाम नहीं आया.
डॉ.सुभाष
भदौरिया गुजरात. ता.२२-८-२०१४
कल 24/अगस्त/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
बेहतरीन
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी रचना
जवाब देंहटाएंhttp://ramaajays.blogspot.jp/
प्रवाहयुक्त ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रेरक प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंWaah...bahut khoob
जवाब देंहटाएंWaah..bahut khoob
जवाब देंहटाएंहक़ीकत को तस्लीम करने के लिए आप तमाम का शुक्रगुज़ार हूँ. बकौले दुष्यन्तकुमार मैं बेपनाह अँधेरों को सु्ब्ह कैसे कहूँ मैं इन नज़ारों का अंधा तमाशबीन नहीं. हम अँधों से मुख़ातिब भी कहां जनाब.
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