ग़ज़ल
हमने चाही वो हमको ख़ुशी ना मिली.
दुश्मनी तो मिली वो दोस्ती ना मिली.
दूर ले जाये हमको बहा के कहीं,
तेज़ रफ़्तार की वो नदी ना मिली.
यूँ अँधेरे मिले बेतहाशा हमें,
पर लिपटकर कभी रौशनी ना मिली.
उम्र भर होंट पर हम सजायें जिसे,
पुरसुकूं दिल की वो बांसुरी ना मिली.
कोई आँसू बहाये हमारे लिए ?
आँख में वो किसी के नमी ना मिली.
डॉ.सुभाष भदौरिया गुजरात ता.३०-१०-२०१४
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें