गुरुवार, 30 अक्तूबर 2014

दूर ले जाये हमको बहा के कहीं,





ग़ज़ल

हमने चाही वो हमको ख़ुशी ना मिली.

दुश्मनी तो मिली वो दोस्ती ना मिली.


दूर ले जाये हमको बहा के कहीं,

तेज़ रफ़्तार की वो नदी ना मिली.


यूँ अँधेरे मिले बेतहाशा हमें,

पर लिपटकर कभी रौशनी ना मिली.


उम्र भर होंट पर हम सजायें जिसे,

पुरसुकूं दिल की वो बांसुरी ना मिली.


कोई आँसू बहाये हमारे लिए ?

आँख में वो किसी के नमी ना मिली.


डॉ.सुभाष भदौरिया गुजरात ता.३०-१०-२०१४




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