ग़ज़ल
वादा करके वो ज़ालिम मुकर जायेगा.
राह तक तक के हर दिन गुज़र जायेगा.
शीशा-ए-दिल से यूं दिल्लगी तू न कर,
हाथ से गर गिरा तो बिखर जायेगा.
और भी
उसकी गुस्ताख़ियां बढ़ गयीं,
हमने सोचा था इक दिन सुधर जायेगा.
तू भी पछतायेगा देख मेरी तरह,
ये नशा इश्क़ का जब उतर जायेगा.
घाव ताज़ा है तकलीफ़ देगा ही ये,
सब्र कर रफ़्ता ऱफ़्ता ये भर जायेगा.
डॉ.सुभाष भदौरिया गुजरात. ता.28-11-2014
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