शुक्रवार, 5 दिसंबर 2014

जाम अश्कों के हमने पिये किस तरह.


ग़ज़ल

जाम अश्कों के हमने पिये किस तरह.
होंट चुपचाप फिर भी सिये किस तरह.

जन्मदिन पर बधाई तो  देते हैं सब,
ये भी सोचो कि अब तक जिये किस तरह.

ज़ख़्म दो चार होते तो सह लेते हम,
ज़ख़्म पर ज़ख़्म सबने दिये किस तरह.

आँच आने न दी उस मुहब्बत को पर,
सारे इल्ज़ाम हमने लिये किस तरह.

एक ही अपने सीने में दिल था मगर,
लाख टुकड़े सभी ने किये किस तरह.


आज अपने जन्म दिन पर ये ग़ज़ल चाहने वालों की नज़र है.

डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात.  ता. 05-12-2014






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