ग़ज़ल
सोच कर तेरे बारे में हम क्या करें.
बीती बातों का अब छोड़़ो ग़म क्या करें.
रोज़ होता नहीं दिल का किस्सा बयां,
रोज़ आँखों को हम अपने नम क्या करें.
मोम के वो नहीं जो पिघल जायेंगे,
अपने पत्थर के हैं इक सनम क्या करें.
साथ तूफां में तो सब निभाते नहीं,
सब में होता नहीं हैं ये दम क्या करें.
झूट की तो नवाज़िश हुई हर तरफ,
सच के हिस्सें में आये ज़ख़्म क्या करें.
जी में आता है सब शूट कर दें यहां,
हाथ में है मगर ये कलम क्या करें.
डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात ता.31-12-2014
आपको नव वर्ष 2015 सपरिवार शुभ एवं मंगलमय हो।
जवाब देंहटाएंकल 01/जनवरी/2015 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंउम्दा ग़ज़ल
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं |
: नव वर्ष २०१५