ग़ज़ल
उदास हैं तो उदासी का कुछ सबब होगा.
तू ही बता दे कि दीदार तेरा कब होगा.
अभी उम्मीद की थोड़ी सी किरन बाकी है,
मरे जो प्यासे तो फिर देखना ग़जब होगा.
खुली रहेंगी मेरी आँखें बाद मरने के,
तेरी ही चाह, तेरा नाम ज़ेरेलब होगा.
गुनाह मैने तो अपने सभी क़बूल किये
सफ़ेदपोश कभी तू भी तो तलब होगा.
वो ताज़ो तख़्त को हँसकर के छोड़ने वाला,
ज़रूर आशिकी उसका यही मज़्हब होगा.
इसी ख़याल ने रक्खा है मालामाल मुझे,
कहीं पे देखना अपना भी कोई रब होगा.
डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात ता.16-03-2015
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