ग़ज़ल
बेवफ़ा इस तरह बेवफ़ाई न
कर.
मानजा, मानजा, जगहँसाई न
कर.
तोड़़ दे मेरे दिल को कोई
ग़म नहीं,
दुश्मनों से तो यूँ दिल
मिलाई न कर.
और भी दाग़ लग जायें दामन
तेरे,
रात-दिन और ज़्यादा सफ़ाई न
कर.
खेत खलिहान की कुछ ख़बर ले
ज़रा,
आसमानों में अब यूँ उड़ाई न
कर.
ख़ूँन सरहद पे बहता ज़रा रोक अब,
और ज़ख़्मों की ज़्यादा
खुदाई न कर.
फासले रख भले चाहने वालों
से,
गैर के तू यहां आवा-जाई न
कर.
डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात
ता.१३-०४-२०१५
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