सोमवार, 13 अप्रैल 2015

बेवफ़ा इस तरह बेवफ़ाई न कर.

ग़ज़ल

बेवफ़ा इस तरह बेवफ़ाई न कर.
मानजा, मानजा, जगहँसाई न कर.

तोड़़ दे मेरे दिल को कोई ग़म नहीं,
दुश्मनों से तो यूँ दिल मिलाई न कर.

और भी दाग़ लग जायें दामन तेरे,
रात-दिन और ज़्यादा सफ़ाई न कर.

खेत खलिहान की कुछ ख़बर ले ज़रा,
आसमानों में अब यूँ उड़ाई न कर.

ख़ूँन सरहद पे  बहता ज़रा रोक अब,
और ज़ख़्मों की ज़्यादा खुदाई न कर.

फासले रख भले चाहने वालों से,
गैर के तू यहां आवा-जाई न कर.

डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात ता.१३-०४-२०१५





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