शनिवार, 2 मई 2015

गुजरात में हिन्दी पर छुरियां जो चलाते हैं.






ग़ज़ल
हिन्दी का कतल कर के त्यौहार मनाते हैं.
इस दौर के हाकिम अब आँखों ना सुहाते हैं.

संसद में तो हिन्दी के वे गीत तो गाते हैं.
गुजरात में हिन्दी पर छुरियां जो चलाते हैं.

कहने को वो हिन्दी की रोटी को जो खाते हैं,,
दड़बे में वो पेंशन की अब ख़ैर मनाते हैं.

मुज़रिम हैं सभी मुज़रिम देखें है तमाशा जो,
है राष्ट्र की जो भाषा उसको लतियाते हैं,

घर फूँक के हमने तो गाया है कबीरा को,
ज़ालिम  को सदा हम तो आईना दिखाते हैं,

होते हैं ज़ुलम जब जब  मज़्बूर व मुफ़लिस पर,
 भूकंप सुनामी सब ऐसे नहीं आते हैं.

गुजरात की ग्रांटिड कॉलेजों से हिन्दी गायब. वर्ष २०१५-२०१६ की राज्य की सभी अनुदानित कॉलेजों की भर्ती प्रक्रिया में 496 अध्यापकों की पदों की भर्ती में एक भी पद हिन्दी के अध्यापकों का रिक्त नहीं हैं, मोदीजी मुख्यमंत्री के १० वर्ष के स्वर्णिम काल में पहले कक्षा १० और कक्षा १२ से हिन्दी को हटाया गया तो फिर ये कॉलेजों में छात्र- छात्रायें कक्षा ९ के बाद कॉलेजों में हिन्दी क्यों पढ़े परिणाम स्वरूप जो होना था हो के रहा. खुद मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र की सरकारी कॉलेज में से हिन्दी गायब कर दी गयी थी. अब सब हिन्दी के पढे पीएच.डी. छात्र छात्रायें रो रहे हैं हमारा क्या होगा. गुरुओं ने हिन्दी पढ़ा के अपना तो घर भरा हमें अनाथ कर दिया. देखने वाली वात ये है कि गुजरात में महात्मा गांधी ने तो हिन्दी को महत्व दिया ही था उससे पूर्व कच्छ के महाराजा ने मध्यकाल में कच्छ में ब्रजभाषा की पाठशाला खोली थी. हमारी शिक्षा भी हिन्दी में पीएच.डी तक गुजरात में ही हुई. आज हिन्दी को गुजरात से क्यों गायब किया गया एक सवाल है. गुजरात में धडाधड अंग्रेजी की लेब खोली गयीं क्यों कंप्यूटर बिके फिर भी आप अध्यापकों में सबसे ज्यादा १२१ जगह खाली हैं अंग्रेजी के नेट स्लेट अध्यापक नहीं मिल रहे. देश के प्रधान मंत्री खुद संसद में हिन्दी में भाषण देते हैं. हिन्दी देश की राष्ट्रभाषा है फिर उसकी गुजरात में हत्या क्यों हुई. हिन्दी के गुजरात में हुई हत्या पर सभी गुजरात के देश प्रेमी शोक मनायें. अब हिन्दी पढ़ने पढाने वालों को कहीं और आशियाना ढूँढना पड़ेगा. चल उड़ जा रे पंछी कि अब ये देश हुआ बेगाना. .उपरोक्त  ग़ज़ल इसी हादसे पर है.

डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात तारीख- 02-05-2015



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