ग़ज़ल
तुम भूल कर कभी भी, न किसी से प्यार करना.
यूँ ही चुपके-चुपके रोना, यूँ ही इंतज़ार करना.
दिल भूलता नहीं है , मिलना वो बिछुड़ जाना,
इक बात के लिए वो बातें हजार करना.
कभी खुद ही रूठ जाना, कभी खुद ही मान जाना,
कभी पास आ लिपटना, कभी बेकरार करना.
मुझे मौत भी हँसी है तू जो साथ क्या कमी है,
मेरी मुश्किलों के साथी मेरा एतबार करना,
ये तो पहले भी हुआ है ये तो बाद में भी होगा,
दुनियां का दो दिलों को यूँ ही संगसार करना.
डॉ.सुभाष भदौरिया गुजरात.ता.३१-०५-२०१५
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