शनिवार, 7 नवंबर 2015


ग़ज़ल
गर्दन भी उतारी जाती है, और हाथ कटाये जाते हैं.
ख़ामोश रहें कुछ न बोलें, गूंगे भी बनाये जाते हैं.

बेचे हैं वतन को कौन यहां ? हिम्मत हो  ज़रा तो सच बोलो.
इल्ज़ाम मुसल्मां पर ही क्यों हर वक्त लगाये जाते हैं.

वो कौन जला है गलियों में ? वो कौन मरा है सड़कों पे ?
हम जैसे दिवाने जाने क्योंअश्कों को बहाये जाते हैं.

हम ईद पे जाते थे , मिलने  होली वो मनाने आते थे,
अब खूँन बहा इक दूजे का, त्यौहार मनाये जाते हैं.

ख़ामोश वो रहकर करता है क़ातिल की रहनुमाई अक्सर,
 आईना दिखाये जो उनको  गद्दार बताये जाते हैं.

फिर नंद तो क्या उसके वंशज मिट जाते है इतिहासों से ,
चाणक्य  के वंशज पर जब जब हथियार उठाये जाते हैं.

डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात. ता. 06-11-2015





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