ग़ज़ल
मेरी जानेमन, मेरी जानेजां,
मेरी चश्मेनम, मेरी दिलरुबा .
तेरे इश्क में, तेरी चाह
में, मेरे दिल तो हो गया बावरा.
मेरे सारे पात हैं झर गये,
मैं तो ठूंठ में हूँ बदल गया,
तू समन्दरों पे बरस गई,
तेरी राह मैं रहा ताकता.
तुझे ये गुमां की मैं बहुत
खुश, तुझे ये गिला कि भुला दिया,
तेरी है तलब मुझे आज भी,
तुझे क्या ख़बर तुझे क्या पता.
अभी झूट का बड़ा शोर है,
अभी झूट का बड़ा ज़ोर है.
अभी आईना है निशान पे, अभी
सच बहुत है डरा डरा.
मेरे हाथ भी हैं क़लम हुए,
मेरी काट दी है ज़बां मगर,
मेरा सर अभी भी तना हुआ, वो
तो कह रहा है झुका झुका.
अभी ज़िन्दा हूँ तो कदर नहीं,
मुझे ढूंढता रह जायेगा,
कभी खो गया जो मैं भीड़
में, कभी हो गया जो मैं लापता.
आज अपने
जन्म दिन पर चाहने वालों के नाम
डॉ. सुभाष
भदौरिया गुजरात. ता.05-12-2015
उम्दा गजल
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