ग़ज़ल
ये न पूछो कि फिर क्या हुआ है.
दर्द सीने में फिर से उठा है.
कोई कांटा हो तो हम निकालें,
फूल अपने कलेजे चुभा है.
हर जगह ये तुझे ढूंढ़ता है ,
मेरा दिल भी हुआ बावरा है.
जी लिया मैं बहुत दिन तेरे बिन,
मौत का ही बस इक आसरा है.
उसकी तस्वीर ही अब दिखादो,
मरते दम बस यही इल्तिजा है.
जिसकी मर्ज़ी हो उसको वो पूजे,
अपना महबूब ही बस ख़ुदा है.
तीर तलवार से ना
कटा जो,
सर मुहब्बत से वो कट गया है.
डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात
ता. 23-12-2015
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