शुक्रवार, 22 जनवरी 2016

तुझसे बिछुड़े अगर तो हम मर जायेंगे.


ग़ज़ल

तुझसे बिछुड़े अगर हम तो मर जायेंगे.
ग़म की सारी हदों से गुज़र जायेंगे.

कैद से अपनी आज़ाद मत कर हमें,
परकटे ये परिन्दे किधर  जायेंगे .

आईना बन के तुम सामने आ गये,
देख कर अक्स  अपना संवर जायेंगे.

और भी अपनी बेताबियां बढ़ गयीं,
सबने सोचा था इक दिन सुधर जायेंगे.

आँधियों से कहो अपनी हद में रहें,
दूसरे होंगे उनसे जो डर जायेंगे.

मोतियों की जिन्हें चाह होगी वही,
वो समन्दर में गहरे उतर जायेंगे.

डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात. ता. 22-01-2016


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