ग़ज़ल
नींद रातों की मेरी,रोज़ उड़ाने वाले.
खो गये जाने कहाँ, दिल को लुभाने वाले.
कोई ई-मेल कोई फोन, कोई ख़त भी नहीं,
याद आते हैं बहुत हमको भुलाने वाले.
खो गये जाने कहाँ, दिल को लुभाने वाले.
कोई ई-मेल कोई फोन, कोई ख़त भी नहीं,
याद आते हैं बहुत हमको भुलाने वाले.
रूठ ले,रूठ ले, फिर मान भी जा अपनों से,
कहीं उठ जायें न दुनियां से मनाने वाले
सर्द रातों की चुभन , उस पे तमन्ना उसकी,
तू कभी भूल से आ दिल को सुहाने वाले.
ये अलग बात कलम हाथ कर दिये सबने,
तेरी तस्वीर कहाँ भूले ? बनाने वाले.
तेरी तस्वीर कहाँ भूले ? बनाने वाले.
डॉ.
सुभाष भदौरिया गुजरात ता. 14-
02-2016
जिस तरह आते हैं तुमहे न आने के बहाने, इस तरहा किसि रोज़ न आने के लिए आ
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