सोमवार, 2 मई 2016

जीना तुम्हारे बिन भी तो तुमने सिखा दिया.


ग़ज़ल
जीना तुम्हारे बिन भी तो तुमने सिखा दिया.
तुमने कहा था हमको भुला दो,  भुला दिया.

अब क्या कहें अख़ीरी में,किस किस का नाम लें
आया करीब दिल के जो उसने दग़ा दिया.


इक बूँद थी तो तुम को कोई, पूछता न था,
मुझमें गिरीं तो तुमको समन्दर बना दिया.


हम दर बदर भटक रहे हैं तुमको क्या पड़ी,
तुमने तो खैर अपना नया घर बसा दिया.

होटों से मुस्कराते रहे महफिलों में हम,
आये जो अश्क आँख में उनको छुपा दिया.


   सब झूट कह के आपकी आँखों में बस गये,
सच हमने क्या कहा कि मेरा घर जला दिया.

डॉ.सुभाष भदौरिया.ता.02-05-2016






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