सोमवार, 30 मई 2016

कब तलक तेरा रस्ता तकें तू बता.

गज़ल
कब तलक तेरा रस्ता तकें तू बता.
आ भी जा, आ भी जा, आ भी जा, आ भी जा.

बदरियां तो समन्दर  पे बरसा करीं ,
खेत मेरा मगर अब भी सूखा पड़ा.

जब से बिछुड़ा, दुबारा मिला ही नहीं,
हर जगह उसको ढूढे है दिल बावरा.

तेरी गलियों से गुज़रा तो ऐसा लगा,
बिन पिये ही मुझे हो गया फिर नशा.

आखिरी सांस तक लब पे वो ही रहे,
चाहे गर्दन पे रख दे जमाना छुरा.

जिसकी मर्जी हो उसकी इबादत करे,
मेरा महबूब ही है मेरा अब ख़ुदा .

डॉ. सुभाष भदौरिया ता. ३०-०५-२०१६




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