ग़ज़ल
मेघ फिर काले-काले ये छाने लगे.
और भी आप अब याद आने लगे.
अपने दिल से निकालो न अब इस तरह,
आते आते यहाँ तक ज़माने लगे.
दर्द-ए-दिल की दवा थे समझते जिन्हें,
आजकल वे ही दिल को दुखाने लगे.
ख़ूबियों की मेरे कुछ कदर ही नहीं,
ऐब ही बस मेरे वे गिनाने
लगे.
पूछते हैं जुदाई का अब सब सबब,
क्या करें हम तो नज़रें चुराने लगे.
तेरे होटों से जब न मयस्सर हुई,
जाम से काम हम तो चलाने लगे.
जाम से काम हम तो चलाने लगे.
डॉ. सुभाष भदौरिया ता.25-06-2016
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