ग़ज़ल
उस बेवफ़ा को फिर से अब याद
किया जाये.
अश्कों को इन आँखों से बर्बाद किया जाये
सूरत ही नहीं मिलती अब तेरी किसी से भी,
फिर दूजा कहो कैसे इर्शाद किया
जाये .
उजड़े जो कहीं गुलशन आबाद करें उसको.
उजड़ा हुआ ये दिल ना आबाद किया जाये.
हम चाहे जिस्म अपना फौलाद बना डालें,
पर मोंम
सा दिल कैसे फौलाद किया जाये.
उसने तो बिछुड़ते हँसकर के कहा मुझसे,
कैदी तू
उमर भर ना आज़ाद किया जाये.
डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात ता.05-11-2016
बहुत सुन्दर ...
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