याद जब तेरी झिलमिलाये है.
फिर कलेजा ये मुँह को आये है.
शीश-ए-दिल की अब तो ख़ैर नहीं
,
देखो पत्थर से दिल लगाये है.
चैन अपना सँभालना तू भी,
चैन मेरा तो तू चुराये है.
आशिक़ी जान ले के छोड़े है,
जो भी सर पर इसे बिठाये है.
हम मुहब्बत में जान दे बैठे,
क्या पता था वो आज़माये है.
ज़िन्दगी
अब कहां से लाऊं तुझे,
मौत पे
आँसू वो बहाये है.
डॉ. सुभाष
भदौरिया गुजरात ता.07-11-2016
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