सोमवार, 17 जुलाई 2017

बरसात का मौसम है, ऐसे में चले आओ.


ग़ज़ल

कुछ मेरी सुनो दिल की, कुछ अपनी सुना जाओ.
बरसात का मौसम है, ऐसे में चले आओ.

फुरसत ही नहीं मिलती, मिलने की तुम्हें हमसे,
बातों से यूँ अपनी तुम , ऐसे तो न बहलाओ.

मैं तुझको पुकारे हूँ, आवाज़ लगा तू भी,
पहले भी बहुत तरसे, अब और न तरसाओ.

आकाश से अपने तुम, थोड़ा तो उतर देखो,
तुम अपनी बुलंदी पे, इतना तो न इतराओ.

हम एक ज़माने से, वाक़िफ़ हैं हर एक शै से,
दुल्हन की तरह हमसे ऐसे तो न शरमाओ.



डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात ता. 17-07-2017

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